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देवकांता संतति भाग 4

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2055
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

दसवाँ बयान


आपको याद दिलाने के लिए हम यहां लिखे देते हैं कि दूसरे भाग के दसवें बयान में हमने अलफांसे के बारे में बताया था और आज जबकि चौथे भाग का दसवाँ बयान लिख रहे हैं तो हमें अलफासे की, याद बहुत सता रही है। आपको याद होगा कि दूसरे भाग के दसवें बयान में गुरुवचनसिंह अलफांसे से मिले और उसे बताया कि वह पूर्व जन्म का शेरसिंह है और विजय देवसिंह के रूप में पूर्व जन्म का उसका भाई था। हम समझते हैं कि इस मुख्तसर से ही पाठकों को बहुत कुछ याद आ गया होगा... किन्तु फिर भी याद न आया हो तो दूसरे भाग के दसवें बयान को एक बार फिर सरसरी नजर से पढ़ जाएं। अलफांसे को बागीसिंह... जिसके बारे में गुरुवचनसिंह ने अलफांसे को बताया था कि उसका असली नाम बलदेवसिंह है... बागीसिंह वह अपने किसी खास मतलब से बना रहता है। उसी बलदेवसिंह ने भी उसे एक बड़ी अनूठी कहानी सुनाई थी और अजब-से धोखे में डाला था। वह सोच रहा था कि कहीं यह बूढ़ा व्यक्ति, जो अपना नाम गुरुवचनसिंह बता रहा है और खुद को उसका हमदर्द बता रहा है... कहीं यह भी तो कोई धोखेबाज नहीं है! अलफांसे अभी इस बात का निर्णय नहीं कर पा रहा था और ध्यान से गुरुवचनसिंह को देख रहा था। अंत में गुरुवचनसिंह ने उससे कहा था कि वह उसे एक अनूठे स्थान पर ले जा सकता है, जहां पहुंचते ही उसे अपने पूर्व जन्म की याद आ जाएगी। अलफांसे यही निर्णय करने के चक्कर में था कि उसे जाना चाहिए या नहीं।

''क्या सोच रहे हो बेटे?'' गुरुवचनसिंह ने बड़ी नम्रता के साथ कहा- ''हमारा यकीन मानो, हम तुम्हें किसी तरह का धोखा नहीं देंगे। हां, इतना जरूर कहेंगे कि जितना समय तुम यहां सोच-विचार में लगा रहे हो, वह खतरनाक है। क्योंकि हम, साफ तौर पर बताए देते हैं कि यह जगह उसी बलदेवसिंह की है, जिसने तम्हें धोखा देकर यहां कैद कर रखा है। हम भी बड़ी मुश्किल से यहां पहुंचे हैं। हो सकता है कि इतनी देर में वह खुद या दलीपसिंह के दो-चार ऐयार यहां पहुंच जाएं और तुम्हें फिर धोखे में डालने की कोशिश करें। इसलिए अच्छा है कि वक्त रहते ही हम लोग यहां से निकल जाएं।''

इस बीच अलफांसे निर्णय ले चुका था। उसने सोचा कि हो-न-हो, इस टापू पर कोई ऐसा गहरा चक्कर जरूर चल रहा है, जिसका उससे कोई बहुत गहरा ताल्लुक है। बागीसिंह जिसका नाम इस बूढ़े ने बलदेबसिंह बताया है, उसे उन चारों के पास से लाया था--जिन्हें उसने बंदर दिखाकर बेहोश कर दिया था। बाद में उसने बड़ा धोखा दिया और उसी धोखे में पड़कर अलफांसे इस वक्त भी कैद में ही था। हो सकता है कि यह बूढ़ा भी कोई धोखेबाज ही हो और सच्चा भी हो सकता है। अगर धोखेबाज ही है तो ज्यादा-से-ज्यादा वह क्या करेगा... कैद कर सकता है। कैद तो वह यहां भी है, फिर उस बूढ़े के साथ चलने में ही क्या आपत्ति है? जैसा भी होगा देखा जाएगा, वह बोला- ''चलो!''

और... इस तरह अलफांसे उसके साथ चल दिया।

अलफांसे को साथ लिए गुरुवचनसिंह मैदान में से होते हुए उस तरफ को जा रहे थे... जहां पहाड़ियां ऊबड़-खाबड़ और ऊंची थीं। अलफांसे यह देखकर दंग रह गया कि इस तरफ की पहाड़ियों में से गुफा का मुंह था। उसे आश्चर्य इस बात का था कि जब उसे इस होश आया था तो उसने चारों तरफ की पहाड़ियों में कोई रास्ता खोजने की बहुत कोशिश की थी, लेकिन उसे यह गुफा का मुंह चमका ही नहीं था। उससे रहा ही नहीं गया तो अपने दिल की बात गुरुवचनसिंह से कह दी... जवाब में गुरुवचनसिंह मुस्कराए और बोले... ''बेटे... उस वक्त यह रास्ता था ही नहीं। यह इस कैदखाने का गुप्त रास्ता है जो केवल दूसरी तरफ यानी सुरंग से ही खुल और बंद हो सकता है।''

जवाब तो अलफांसे ने सुन लिया, लेकिन उसकी नजर गुरुवचनसिंह की अजीब-सी मुस्कराहट पर स्थिर हो गई, बोला- 'लेकिन आप इस तरह मुस्करा क्यों रहे हैं? क्या मैंने कोई बचकानी बात कह दी है?'' जवाब में गुरुवचनसिंह की मुस्कराहट और भी ज्यादा गहरी हो गई और वह बोले- ''नहीं, मेरे मुस्कराने का सबब ये है कि जब इन्सान की आत्मा एक शरीर त्यागकर दूसरा शरीर ग्रहण कर लेती है तो पहले जन्म की बातें वह आत्मा किस तरह भूल जाती है।''

''क्या मतलब?'' अलफांसे ने प्रश्न किया।

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