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देवकांता संतति भाग 3

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2054
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

सातवाँ बयान


सामने खड़े करतारसिंह के चेहरे पर मौजूद भावों का एक भी लक्षण ऐसा नहीं था, जो यह प्रदर्शित करता कि उसे किसी तरह का भय है। जबकि चंद्रदत्त, शंकरदत्त और बालीदत्त गहन आश्चर्य से उसका चेहरा तक रहे थे। करतारसिंह की अभी तक की बातों से वे यही समझ रहे थे कि नलकूराम ने किसी सबब से अपना विचार बदल दिया होगा और वह पन्नालाल के स्थान पर करतारसिंह के भेस में यहाँ आया है - जोरावरसिंह के सन्देह प्रकट करने पर करतारसिंह ने जिस दृढ़ता के साथ अपनी जांच करने के लिए कहा था.. वह आश्चर्य की ही बात थी। चंद्रदत्त इत्यादि समझते थे कि यह नलकू है तो फिर क्या इसे इस बात का जरा भी भय नहीं है, कि अगर इसकी जांच की गई तो सारी कलई खुल जाएगी। खैर.. वे सब अपने-अपने विचारों में फंसे रहे, उसी समय वहां सुखदेव भी पहुंच गया। उसे देखते ही जोरावरसिंह ने उससे कहा- ''वाह सुखदेवजी, तुम भी अच्छे समय पर यहां पहुंचे.. इस समय हमें किसी ऐयार की ही जरूरत थी। जरा अपने बटुए से रोगन उतारने की दवा निकालकर सामने खड़े करतारसिंह के चेहरे पर तो लगाओ। ये राजगढ़ से एक ऐसी खास खबर लेकर यहां पहुंचे हैं.. जिसे सुनते ही सारी सेना राजगढ़ पहुँचने के लिए तैयार हो जाए। इसी से हमें शक होता है कि ये करतारसिंह कहीं सुरेंद्रसिंह के ऐयार तो नहीं हैं। कभी ये सोचते हों कि हमारी इतनी मेहनत पर ये एक ही सायत में पानी फेर दें।''

सुखदेवसिंह आगे बढ़ा और अपने बटुए से एक दवा निकालकर अच्छी तरह से करतारसिंह के चेहरे पर मली। परन्तु करतारसिंह के चेहरे पर किसी तरह का फर्क नहीं पड़ा। यह देखकर जहां जोरावरसिंह की गलतफहमी दूर हो गई, वहां चंद्रदत्त, शंकरदत्त और बालीदत्त का तरद्दुद और भी अधिक बढ़ गया। वे सोचने लगे कि अगर यह नलकूराम होता तो निश्चय ही उस दवा से भेद खुल जाता। किन्तु इसका मतलब तो ये हुआ कि राजगढ़ से आने वाला करतारसिंह असली करतारसिंह है - अगर यह असली है तो इसे राजगढ़ से झूठी खबर लाने से क्या मतलब? कहीं यह खबर वास्तव में सच्ची ही तो नहीं है? कहीं सूर्यजीत ने सचमुच ही तो राजगढ़ पर हमला नहीं कर दिया है? परन्तु अगर यही सोच लिया जाए तो नलकूराम कहां गया? वह अभी तक पन्नालाल के भेस में आया क्यों नहीं? खैर.. वे इसी तरद्दुद के शिकार थे और उधर जोरावर को करतारसिंह पर विश्वास हो गया था। उसने करतारसिंह से पूछा- ''क्या तुम राजगढ़ से यहां तक पैदल ही आए हो?''

''नहीं'।'' करतारसिंह ने जवाब दिया- ''हम घोड़े से आए हैं,. कल सुबह ही वहां से चले हैं। बड़ी कठिनाई से यहां तक पहुंचे हैं।

''क्या यह खबर बिल्कुल सच्ची है जो हमें सुनाई है?'' जोरावर ने पूछा- ''क्या वास्तव में सूर्यजीत ने राजगढ़ पर हमला किया है?''

''जी हां!'' करतारसिंह बोले- ''अगर जल्दी ही मदद न भेजी गई तो राजगढ़ में हमारे परिवार लाशों में बदल जाएंगे।''

''अब हमारे लिए क्या आदेश है महाराज?'' जोरावरसिंह ने घूमकर चंद्रदत्त से पूछा।

अपने विचारों मे खोए चंद्रदत्त चौंके, फिर सोचा.. जो भी हो। चाहे यह खबर झूठी हो या सच्ची, किन्तु यहां से तो चलना ही है, अत: बोले- ''हमारा ख्याल क्या. पूछते हो.. जब राजगढ़ से आए करतारसिंह ऐसी खबर सुनाते हैं तो भला हम यहां कैसे बैठे रह सकते हैं? हमारा सबसे पहला काम तो अपने राज्य की' रक्षा करना है। सेना में घोषणा कर दो कि हमें इसी समय राजगढ़ कूच करना है। हम कांता की खातिर अपने राज्य की बर्बादी नहीं देख सकते। पहला काम राजगढ़ को बचाना है.. कांता वाला काम तो बाद में भी देखा जा सकता है। तुम भी फौरन कूच की तैयारी करो.. तब तक हम करतारसिंह से बातें करते हैं।''

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