ई-पुस्तकें >> देवकांता संतति भाग 2 देवकांता संतति भाग 2वेद प्रकाश शर्मा
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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...
''आपके लिए अपने प्राणों की बाजी लगाना मेरा धर्म है महाराज।'' नलकू पूरा वफादार बनकर बोला-- ''वैसे मुझे उम्मीद तो बिल्कुल नहीं है कि यह सबकुछ सुरेंद्रसिह के ऐयारों की ऐयारी होगी.. क्योंकि सबसे पहले तो सोचने की बात यही है कि, वे महल से बाहर कैसे आ सकते हैं, किन्तु फिर भी ऐयारों का क्या भरोसा? दूसरी तरफ खुद जोरावर की लिखाई का यह पत्र अन्य कौन लिख सकता है? तीसरी बात ये है कि खुद मुझे भी इस बात का यकीन है कि जोरावरसिंह कांता को और राजगढ़ को पाने के लिए सबकुछ कर सकता है.. परन्तु फिर भी अपनी बात की पुष्टि कर लेने में क्या हर्ज है?''
''तुम ठीक कहते हो नलकू -- तुम जाकर जल्दी से अपनी ऐयारी का कोई कमाल दिखाओ।'' चंद्रदत्त ने उसे आज्ञा दी।
ननकू सलाम करके डेरे से नाहर निकल गया। राजा के डेरे के आसपास कई अलाव जल रहे थे। खास राजा के डेरे के चारों ओर जलते इन अलावों का एक सबब ये भी था कि अंधेरे का लाभ उठाकर कोई सिपाहियों की नजर से छुपकर महाराज के डेरे तक न पहुंच सके। नलकू डेरे से बाहर निकला, उसे किसी ने रोकने की कोई कोशिश नहीं की, सभी सैनिक जानते थे कि नलकू चंद्रदत्त का खास ऐयार है। वे तो नहीं जानते किन्तु हम जानते हैं कि हमारे पाठक बहुत पहले समझ चुके हैं कि यह नलकू असली नलकू नहीं है --- बल्कि सुरेंद्रसिह के ऐयारों में से कोई है। जहां तक हमारा ख्याल है, बहुत से पाठक इसका नाम भी समझ गए होंगें - जो नहीं समझे हैं, उन्हें हम बता देते हैं कि नलकू के भेष में इस समय शेरसिंह महाराज हैं। हमारा ये दिलेर ऐयार दुश्मन की सेनाओं के बीच है। उसके प्राण इस समय हथेली पर हैं। अगर यह भेद खुल जाए कि वह शेरसिंह है.. तो उसकी हड्डियों का भी पता न लगे। शेरसिंह के मालिक यानी राजा सुरेंद्रसिंह को इस युद्ध में विजयी होने का स्वप्न भी नहीं है। हारी हुई बाजी को हमारा ये दिलेर ऐयार अपने दिमाग का प्रयोग करके ही रात में किस तरह पलट रहा है, वह आपके सामने है। दुश्मनों की फौज में घुसकर शेरसिंह इतना सबकुछ कर रहा है और अभी तक चंद्रदत्त, शंकरदत्त तथा बालीदत्त के अलावा कोई ये भी नहीं जानता कि रात के इस अंधकार में, जबकि चारों ओर सन्नाटा है --- हमारा ऐयार किस ठंग से बाजी पलट रहा हे! यह सबकुछ केवल शेरसिंह की बुद्धि और दिलेरी के कारण हो रहा है। शेरसिंह अपना आधा रंग चंद्रदत्त पर चढ़ा चुका है - आगे वह क्या करता है, वह जरा ध्यान से पढ़ने की बात है।
वो देखिए, नलकू बना हुआ शेरसिंह किस तरह मस्ती के साथ दुश्मन के सिपाहियों के बीच से गुजर रहा है। कुछ ही देर में वह उसी डेरे में पहुंच गया, जहां इस समय गोपालदास उसका इन्तजार कर रहा है। इस समय गोपालदास भी चंद्रदत्त के एक ऐयार सुखदेव के भेष में है। असलियत ये है कि यह डेरा नलकूराम और सुखदेव का ही था। शेरसिंह और गोपालदास ने अपने ढंग से उस पर कब्जा किया है। असली सुखदेव और नलकू डेरे में एक तरफ चटाई में लिपटे पड़े हैं और हमारे ये दिलेर ऐयार सुखदेव और नलकू बने हुए हैं। शेरसिंह के पहुंचते ही सुखदेव के वेश में बैठा गोपालदास पूछता है-
'क्या रहा?''
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