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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

चंद्रदत्त ने पूरा पत्र पढ़ लिया और कुछ देर तक अपने हवा में चकराते दिमाग पर काबू पाने का प्रयास करते रहे। काफी देर बाद वे खुद को संयत क्रर सके, शंकरदत्त और बालीदत्त भी ऐसी स्थिति देखकर घबरा गए। उन्होंने एकदम पूछा-

''क्या हुआ पिताजी - इन खतों में क्या लिखा है?''

''कुछ नहीं बेटे - जोरावरसिंह विभीषण बन गया।'' बुरी तरह परेशान राजा चंद्रदत्त बोले और उन्होंने सबकुछ अपने दोनों लड़कों और नलकूराम को भी बता दिया। नलकू भी वहीं उनके पास बैठ गया था। सब कुछ सुनने और दोनों पत्र पढ़ने के बाद उन तीनों के चेहरों से भी चिंता टपकने लगी। शंकरदत्त बोला- ''मैं पहले ही कहता था पिताजी - हमें  जोरावरसिंह पर इतना विश्वास नहीं करना चाहिए था। वो कमबख्त कांता के चक्कर में।''

''कांता सुन्दर ही इतनी है कुंवर साहब कि उसके लिए कोई भी  पुरुष जो भी कुछ कर दे वह कम है।'' नलकू बोला- ''आज का हर जवान आदमी अपनी पत्नी के रूप में केवल राजकुमारी कांता को ही देखना चाहता, है। हम लोगों ने भरतपुर पर हमला केवल कांता के लिए किया था। उसी कांता को प्राप्त करने के लिए जोरावरसिंह हमसे गद्दारी कर बैठा है। इसमें  आश्चर्य की कोई बात नहीं है। कांता है ही ऐसी रूपवान।''

''इन बातों को छोड़ो, नलकू।'' परेशान चंद्रदत्त बोले- ''अब तो  आगे की सोचो।

''हम समझते हैं कि इस समय हमारे पास तुम ही एक वफादार  ऐयार हो। अन्य किसी से तो हम यह भेद कह भी नहीं सकते - क्योंकि क्या पता कौन-सा ऐयार जोरावरसिंह से मिला हुआ हो? शुरू से तुम ही हमारे विश्वासपात्र हो, तुम ही अपने ऐयारी के दिमाग से सोचकर कुछ ऐसी तरकीब बताओ - जिससे सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। कल तक हमें अपनी विजय में किसी तरह का संदेह नहीं था - मगर आज लगता है कि हमें अपनी जान भी बचानी भारी है। कुछ बताओ नलकू इस समय हमें क्या करना चाहिए?''

''सबसे पहले तो हमें यह पता लगाना चाहिए महाराज कि जोरावरसिंह गद्दारी कर भी रहा है या नहीं।'' नलकूराम बोला- ''कहीं ऐसा न हो कि यह सारा जाल दुश्मनों के ऐयारों का बिछाया हुआ हो। वे आप में और जोरावरसिंह में फूट डलवाना चाहते हों - ताकि आप खुद ही अपनी फौजें यहां से हटा लें।''

''हम तुम्हारा मतलब नहीं समझे नलकू!'' चौंककर राजा चंद्रदत्त बोले- 'भला ऐसा कैसे हो सकता है? खुद जोरावरसिंह के हाथ का लिखा खत हमारे पास है।''

''ये तो मैं नहीं कह सकता महाराज।'' नलकू ने कहा- ''इसमें दुश्मन के ऐयारों की क्या चाल हो सकती है - यह तो मैं नहीं बता सकता - परन्तु इन खतों में कुछ इस तरह की बातें लिखी हैं - जिसकी जांच करके हम सत्यता का पता लगा सकते हैं, जैसे इसमें लिखा है कि जोरावरसिंह धागे में बांधकर खत सुरेंद्रसिंह के पास पहुंचाता है। आज की रात ही हम जांच कर सकते हैं कि ऐसा है भी अथवा नहीं। दूसरी बात ये कि हम गुप्त ढंग से जोरावरसिंह के डेरे की तलाशी भी ले सकते हैं। अगर वास्तव में यह सुरेंद्रसिह के ऐयारों की ऐयारी नहीं है... तो हमें जोरावरसिंह के डेरे से सुरेंद्रसिंह का एकाध खत जरूर मिलना चाहिए।''

''शायद तुम ठीक कहते हो।' चंद्रदत्त बोले- ''लेकिन क्या तुम अकेले आज की शेष रात में इतना सबकुछ काम कर सकोगे?''

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