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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

एकाएक सिंगही की लाश खिलखिला उठी, फिर जैक्सन की। और फिर देखते-ही-देखते वे सातों लाशें जोर-जोर से हंसने लगीं। कभी भयभीत न होने वाले बांड के जिस्म में झुरझुरी-सी दौड़ गई। लाशों से निकली तीक्ष्ण सड़ांध के कारण उसका दिमाग फटा जा रहा था। लाशें जोर-जोर से हिल रही थीं। बांड में इतना साहस नहीं रहा कि वह अधिक देर तक अपने स्थान पर खड़ा रहे। यह गैलरी में एक तरफ को इस प्रकार भागा, मानो हजारों भूत एकदम उसके पीछे लग गए हों। उसे ध्यान नहीं रहा कि वह किधर भागा जा रहा है - बस भागता ही रहा अचानक उसे बालकनी में एक तरफ एक कमरे का खुला हुआ द्वार चमका। बिना कुछ सोच-समझे वह उसी में घुस गया।

उसे तो उस समय होश आया - जब उसने महसूस किया कि जिस कमरे में वह घुसा है - उसके अन्दर आते ही कमरे का दरवाजा बन्द हो गया। उसने पलटकर पीछे देखा - दरवाजा बन्द - बाहर निकलने का कहीं कोई रास्ता नहीं। उसके चेहरे पर अजीब-से अज्ञात भाव थे। सांस फूली हुई थी - सारा जिस्म पसीने से तर था! जब उसने कुछ होश सम्भाला तो उसने देखा- वह उसी हंस और शेर वाले कमरे में था। यह देखकर उसे एक बार पुन: गहन आश्चर्य हुआ, उसकी समझ में यह नहीं आया कि वह इतना घूमकर पुन: इस कमरे में कैसे आ गया।

एक बार को तो बांड ने सोचा कि कहीं वह पहले जैसे ही बने किसी दूसरे कमरे में तो नहीं आ गया है? मगर इस विचार को स्वयं उसके दिमाग ने भी स्वीकार नहीं किया। एक-एक चीज वैसी ही थी जैसी कि वह विजय के चित्र वाली कोठरी के दरवाजे में से खड़ा होकर देख चुका था। उसने महसूस किया कि इस बार भी हंस और शेर उसी को घूर रहे हैं। इस बार वह उस हंस और शेर की विशाल आकृति की ओर बढ़ा - उनकी पुतलियां इस समय भी उसी प्रकार झपक रही थीं। वह उसी आकृति पर दृष्टि जमाए समीप पहुंचा। वहां पहुंचते ही सबसे पहले जिस चीज पर सर्वप्रथम उसकी दृष्टि स्थिर हुई, वह अन्य कुछ नहीं, बल्कि वही जन्मपत्री थी, जो हम इस बयान के शुरू में ही बना आए हैं। यह जन्मपत्री संगमरमर के बने हंस के मस्तक पर बनी है। उसी की नकल उतारकर हमने इस बयान के श्रीगणेश की शोभा में चार चांद लगाए हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हंस और शेर की आकृति को बनाने वाले कारीगर ने उसी समय हंस के मस्तक वाले संगमरमर को तराश कर ये जन्म-पत्री बनाई है।

जेम्स बांड यह तो समझ ही रहा था कि हंस के माथे पर बनी इस जन्मपत्री का मतलब कोई गहरा है? किन्तु यह मतलब क्या है--यही बात बांड के दिमाग में नहीं बैठ रही थी? इस थोड़े से समय में ही बांड ने ऐसे-ऐसे करिश्मे देखे थे कि उसे महसूस हो रहा था, अगर कुछ देर वह और इस तिलिस्म में फंसा रहा तो निश्चय ही वह पागल हो जाएगा।

यह जन्म-पत्री पाठकों के लिए भी एक चुनौती है, बुद्धिजीवी पाठक इसका मतलब निकालने का प्रयास करें। वर्ना आगे चलकर हम तो कही न कहीं खोल ही देंगे। देखिए बांड इस जन्मपत्री को अभी तक नहीं समझ पाया है और बेचारा अपना सिर पकड़कर वहीं बैठ गया है।

 

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