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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

क्योंकि ---- क्योंकि वे दोनों लाशें प्रिंसेज जैक्सन और सिंगही की हैं। सिंगही और जैक्सन - विश्व-विजेता बनने के ख्वाब देखने वाले विश्व के दो महान भयानकतम अपराधी। यहां-इस हाल में - लाशों के रूप में! यह जेम्स बांड की कल्पना से बाहर की बात थी। हमेशा विश्व के लिए खतरा बनने वाले ये खतरनाक मुजरिम यहां कैसे फंस गए! ये उनकी लाशें हैं! ये दोनों मारे गए! नहीं-नहीं! बांड का दिल स्वयं ही चीख उठा - ये दोनों इतनी आसानी से मरने वाले नहीं हैं।

तो फिर - वह यह क्या देख रहा है। सिंगही और जैक्सन की लाशें!

और लाशें भी भयानकतम घृणित स्थिति में, ऐसा प्रतीत होता है, जैसे सदियों से ये लाशें यहीं, इसी स्थिति में टंगी हुई हवा में झोंकों के साथ लहरा रही हों। लाशों से तीव्र दुर्गन्ध उठ रही थी। विभिन्न प्रकार के कीड़ों ने उनकी लाशों को नोच दिया था। लाशें सड़ चुकी थीं---तीव्र सड़ांध बांड के नथुनों में घुसकर उसके दिमाग को भी सड़ाने लगी। किसी भी लाश के जिस्म पर कोई कपड़ा नहीं था। सभी बांड की आखों के सामने झूल रही थीं। उसे विश्वास नहीं आ रहा था कि वह जो कुछ देख रहा है वह हकीकत है - सिंगही और जैक्सन मर भी सकते हैं!

अभी बांड अपने आश्चर्य पर काबू भी नहीं कर पाया था कि- --''तुम भी यहां आ गए, जेम्स बांड..?'' एकाएक बांड उछल पड़ा, जब उसने सिंगही की लाश को बोलते हुए देखा---''हमें लगता है कि दुनिया के सभी जांबाजों की कब्र इसी तिलिस्म में बनेगी -- तुमने मुझे पहचान तो लिया ही होगा! मैं सिंगही हूं..।''

बांड के आश्चर्य का कोई ठिकाना नहीं रहा -- उसने साफ देखा था, उल्टे सिंगही के होंठ हिले और सिंगही की आवाज को भी वह लाखों में पहचान सकता था। अपने महानतम आश्चर्य पर काबू पाते हुए वह वोला-''क्या तुम जीवित हो...?''

'इस भ्रम में न रहो बांड।'' एकाएक प्रिंसेज जैक्सन की लाश बोल पड़ी-''हम सब मृत हैं।''

'क्या बकते हो?'' बांड की खोपड़ी घूम गई-''लाशें भी कहीं बोलती हैं?''

''यही तो तुम नहीं जानते नादान जासूस!'' प्रिंसेज जैक्सन के पास ही टंगी दूसरी लाश कह उठी-''हम मानते हैं कि जिस दुनिया से तुम आए हो - वहां लाशें बोला नहीं करती हैं, लेकिन याद रखो इस समय तुम ऐसी नगरी में हो, जहां तुम्हें एक भी आदमी जीवित नहीं मिलेगा, सभी मृत हैं ------ लेकिन यहां की सभी लाशें बोलती हैं। कुछ दिन बाद तुम भी जीवित नहीं रहोगे -- हमारी तरह लाश बन जाओगे।''

''मैं इस बेवकूफी को नहीं मान सकता।'' पागल-सा होकर बांड चीख पड़ा-''तुम सब मुझे भ्रमित करना चाहते हो। तुम मरे नहीं हो।'' बांड कहने के साथ ही एकदम जोश में सिंगही की लाश की ओर झपटा - मगर उसके जिस्म पर हाथ लगाते ही चकरा गया बांड - सिगही का जिस्म किसी लाश की भांति ही एकदम ठण्डा था। बांड ने उसके जिस हिस्से पर हाथ लगाया था, वहां की खाल इस तरह किरकिराकर नीचे गिर गई, जैसे वह जला हुआ कागज हो। उसने जल्दी से सिंगही की नब्ज टटोली -- एक भी स्पन्दन नहीं था। लाशें सांस नहीं ले रही थीं। इसका मतलब वे सब वास्तव में मृत थे। जीवन का एक भी लक्षण उन जिस्मों में नहीं था -  लेकिन वे बोल रहे थे।

''क्या, अब तो विश्वास हुआ कि हम सब मर चुके हैं?'' सिंगही की लाश बोल उठी।

जैम्स बांड आश्चर्य से दो कदम पीछे हट गया। जीवन में शायद बांड को कभी एक साथ इतने अधिक व गूढ़ आश्चर्यों का सामना नहीं करना पड़ा था - वह हैरत के साथ उन लोगों को देख रहा था, जिनमें बोलने के अतिरिक्त जीवन का अन्य कोई संकेत नहीं था।

अचानक हवा का एक तीव्र झोंका आया और सातों लाशें जोरों से हिल पड़ीं, फिर!

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