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देवकांता संतति भाग 2

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2053
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

अलफांसे इस अजीब कहानी को बड़े ध्यान से सुनता रहा। अलफांसे निश्चय नहीं कर पाया कि यह कहानी सच्ची है अथवा उसे खूबसूरत ढंग से बेवकूफ बनाया जा रहा है, गुरुवचनसिंह के चुप होने पर अलफांसे बोला- ''लेकिन आपको यह सब कैसे पता?''

''हमें यह उसी दिन से पता है, जब शेरसिंह के रूप में तुम्हारी मृत्यु हुई।'' गुरुवचनसिंह ने बताया- ''अगर तुम्हें विश्वास न हो तो हमारे साथ आओ, हम तुम्हें अपने हाथ द्वारा लिखा हुआ दिखाएंगे। आज से लगभग चालीस वर्ष पूर्व ही हमने यह सब अपने ग्रन्थ में लिख दिया था। हमारा ज्ञान बता रहा था कि यही सबकुछ होगा और आज हमारी भविष्यवाणी की सत्यता हमारे सामने है।''

'तो आप अपने ज्ञान के आधार पर मेरे अलफांसे वाले जीवन की कोई ऐसी घटना बताइए, जो मुझे भी याद हो!'' अलफांसे ने कहा- ''संभव है कि आप सही बता दें और मुझे आपकी बातों पर विश्वास हो जाए। क्योंकि अभी तक आपने मुझे जो भी कुछ बताया है, उसके बारे में स्वयं मुझे कोई जानकारी नहीं है।''

''हम अपने ज्ञान के आधार पर कह सकते हैं कि तुम्हारे जीवन में आर्थर नामक एक आदमी आया होगा, जो तुम्हें बहादुरी के कारनामे सिखाता होगा और इस मामले में वही तुम्हारा गुरु भी होगा। तुम्हें उस समय की घटना याद होगी, जब तुम सात साल के थे। तुम एक बार सांप पकड़कर लाए होगे। जोहन हैरिस को वोंगो नामक एक आदिवासी सरदार ने कत्ल कर दिया होगा। उसी रात तुम अपने घोड़े 'ब्लैक स्टोन' पर सवार होकर वोंगो का खून कर आए होगे। इसके बाद तुम्हारे जीवन में साइमन नामक एक टीचर आया होगा, उसने तुम्हें आठ वर्ष के अन्दर बॉक्सिंग का गुरु बना दिया होगा। अखवारों ने तुम्हें बेबी टाइगर का उपनाम दिया होगा!'

'बस-बस...!'' आश्चर्य में डूबा अलफांसे एकदम बोला- ''मुझे सबकुछ याद है.. तुम जो कुछ कह रहे हो, वह सबकुछ ठीक है।''

''मैं तुम्हें एक ऐसे स्थान पर ले जाना चाहता हूं जहां तुम्हें अपने पूर्वजन्म, यानी उस समय की याद आ जाएगी जब तुम शेरसिंह थे।'' गुरुवचनसिंह भी खुश होता हुआ बोला- 'उस अनूठे स्थान पर पहुंचते ही तुम्हें पूर्वजन्म की याद आ जाएगी।''

अलफांसे का दिमाग बड़ी तेजी से घूम रहा था। जैसी परिस्थितियों में वह आज फंसा था, ऐसी परिस्थिति उसके जीवन में पहले कभी नहीं आई थी। वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि गुरुवचन की बातों पर विश्वास करे अथवा नहीं। गुरुवचन की बातें सत्य थीं, यह वह जानता था। किन्तु फिर भी वह किसी प्रकार का निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वह क्या करे? अपने मस्तिष्क का खोया सन्तुलन समेटकर वह बोला- ''क्या आप ज्योतिष-ज्ञान के आधार पर बता सकते हैं कि मेरे पूर्वजन्म का बड़ा भाई यानी देवसिंह इस समय कहां है?''

''तुम्हारे बाद कांता को एक तिलिस्म में कैद कर लिया गया था।'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''तुम्हारा भाई देवसिंह उसे तिलिस्म से मुक्त कराने के प्रयास में मारा गया। मगर हम जानते हैं कि.. उसी देवसिंह का पुनर्जन्म विजय के रूप में हुआ है।''

''क्या?'' बुरी तरह उछल पड़ा अलफांसे- ''विजय मेरे पूर्व जन्म का भाई देवसिंह!''

'हां बेटे!'' गुरुवचनसिंह ने कहा- ''विजय ही पूर्वजन्म का देवसिंह है और तुम पूर्व जन्म के शेरसिंह हो। तुम दोनों उस जन्म में भाई थे और वह तिलिस्म, जिसमें तुम्हारे पूर्वजन्म की भाभी और विजय यानी देवसिंह की पत्नी कांता कैद है, उस तिलिस्म को केवल तुम दोनों भाई ही मिलकर खोल सकते हो! विधाता ने तुम्हारे भाग्य में पहले ही लिख दिया था कि जब तुम दोनों विजय और अलफांसे के रूप में चालीस-चालीस वर्ष के हो जाओगे तो तुम स्वयं आकर वह तिलिस्म तोड़ोगे। विधाता ने यह भी लिख दिया है कि चालीस वर्ष की आयु में तुम दोनों को अपने पूर्वजन्म का स्वप्न चमका होगा। किन्तु अभी अड़तीस साल के हो, अत: वह स्वप्न दो साल बाद ही चमकेगा। किन्तु मै तुम्हें एक ऐसे अनूठे स्थान पर ले जा सकता हूं जहां जाते ही तुम्हें अपने पूर्व जन्म की याद ताजा हो उठेगी। अगर तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास हो बेटे तो जल्दी से मेरे साथ चलो.. मैं तुम्हें तुम्हारा पूर्वजन्म दिखाता हूं।''

अलफांसे की बुद्धि बुरी तरह चकरा रही थी। वह समझ नहीं पा रहा था कि जो कुछ उसके सामने आ रहा है.. वह गलत है अथवा ठीक।

अलफांसे के मस्तिष्क की एक नस कहती थी कि जो कुछ गुरुवचनसिंह कह रहे है, वह ठीक है, किन्तु दूसरी नस कहती थी कि यह किसी सुलझे हुए दिमाग द्वारा बिछाया गया एक खूबसूरत जाल है - जिसमें वह फंसता जा रहा है।

 

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