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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

चौदहवाँ बयान

आज जब हम लिखने बैठ रहे हैं तो अचानक वन्दना की याद आ रही है। वन्दना को तो हमने बिल्कुल इस तरह डाल दिया है कि जैसे भूल गए हों। आज सोचते हैं कि क्यों न हम उसका हाल लिखकर पाठकों को रोमांचित करें। हमारे पाठकों को ठीक प्रकार से याद होगा कि वन्दना को पांच नकाबपोश पकड़कर ले गए थे। बाग में उसने संगमरमर की बनी अपनी ही प्रतिमा देखी थी और उसे गिरफ्तार करने वाले नकाबपोशों ने उसे अपनी महारानी अथवा मालकिन बताया था। उसके बाद नकाबपोशों ने उसे एक कैदखाने में डाल दिया था, अभी उसे कैदखाने में अधिक देर न हुई थी कि छत के एक रोशनदान से कमन्द लटका और एक आदमी ने कहा था-''महारानी जल्दी से इस कमन्द पर चढ़ जाइए।''

'उस आदमी का सारा चेहरा काली स्याही से पुता हुआ था और इसके सबब से वह पहचान में नहीं आता था।

एक तो वन्दना पहले ही कुछ कम ताज्जुब में नहीं थी.. ऊपर से उस आदमी ने उसका ताज्जुब और अधिक बढ़ा दिया। हालांकि वन्दना अभी तक मर्दाने भेष मंउ थी, किन्तु इस आदमी का उसे महारानी कहने का सबब समझ में नहीं आ रहा था। पहले तो उसकी समझ में नहीं आया कि क्या करना चाहिए, लेकिन अन्त में-यही निश्चय किया कि फिलहाल उसे कैद से छुटकारा पाना चाहिए, अत: वह कमन्द पर चढ़ती चली गई। जब वह उस आदमी के समीप ऊपर पहुंची तो उसने देखा कि वह एक अन्य कोठरी में है। उसने देखा - उस व्यक्ति के चेहरे पर ही नहीं, बल्कि सारे बदन पर काली स्याही पुती हुई है। उसके बदन पर कपड़े के नाम पर एक काला लंगोटा बंधा हुआ है।

''आप कौन हैं ?'' वंदना ने पूछा।

मगर काली स्याही से पुता ये आदमी जवाब में होंठों पर उंगली रखकर उसे, चुप रहने का संकेत देता है। कमन्द अपनी कमर से बांधकर वह बन्दना को साथ-साथ आने का संकेत करके दरवाजे की ओर बढ़ता है। एक दालान में से गुजरता हुआ वह उसी बाग में आ जाता है जिसमें वन्दना की प्रतिमा बनी हुई है। वह वन्दना को साथ लेकर अंधेरे में एक तरफ बढ़ रहा है। कुछ देर बाद वह एक सुरंग में दाखिल हो जाता है।

सुरंग में काजल-सा अंधकार छाया हुआ है।

'आपके पास मोमबत्ती होगी, महारानी?'' वह आदमी कहता है? वन्दना अपने ऐयारी के बटुए में से मोमबत्ती और चकमक पत्थर निकालकर मोमबत्ती जला लेती है। सुरंग में प्रकाश हो जाता है। वह आदमी अपने हाथ में मोमबत्ती लिये वन्दना के साथ बढ़ा चला जाता है।

'अब तो बताइए कि आप कौन हैं?'' वन्दना अपनी जिज्ञासा पर संयम न पा सकी थी।

'मेरा जिस्म काली स्याही से पुता हुआ है।' कदाचित इसीलिए आप मुझे नहीं पहचान पाई हैं।'' उस आदमी ने कहा-''मेरा नाम महादेवसिंह है और मैं आपका मंत्री हूं... मैं कई वर्ष से आपकी तलाश में था.. आज भी आपको जब देखा तो कुछ ध्यान नहीं दिया.. परन्तु जब आपकी आवाज सुनी तो मेरा ध्यान आपकी तरफ गया और मैं पहचान गया कि आप ही हमारी महारानी हैं.. किसी खास सबब से आपने भेष बदला है।''

वन्दना समझ नहीं पा रही थी कि यह सब क्या गुत्थी है, बोली--''तुम कौन-सी महारानी की बात कर रहे हो?''

'महारानी इन्द्रावती।'' महादेव ने कहा-''आप हमसे खुद को मत छुपाइए।''

''लेकिन मेरा नाम इन्द्रावती तो नहीं है।'' वन्दना ने कहा।

'हम जानते हैं कि आपका असल नाम वन्दना है।'' उसने कहा-''लेकिन आपने ही कहा था कि हम कभी आपका असल नाम न लें और हमेशा महारानी इन्द्रावती के नाम से ही पुकारा करें।''

'मैं वन्दना तो अवश्य हूं लेकिन।'' कहते-कहते एकदम रुक गई वन्दना, जैसे एकदम याद आ गया हो, बोली--''अच्छा.. ओह, तुम महादेवसिंह हो.. हमारे मंत्री। पहचानें भी कैसे, सारा बदन तो काला कर रखा है, कहो इतने दिन से कहां थे ?'' वन्दना ने पूछा।

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