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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

उस समय रात का प्रथम पहर आरम्भ हो गया था, जब प्रजा विदा हो गई और वहां केवल सिपाही व ऐयार आदि रह गए।

 'अब तुम अपनी शिकायत हमसे कह सकते हो।''

'मेरा मतलब पूर्णतया तखलिये से था महाराज।'' मायादेवी ने मर्दाने स्वर में कहा-''बात कुछ ऐसी है कि केवल आप ही को बताई जा सकती है। कृपा करके आप एक सायत (क्षण) के लिए मुझे अपने विशेष कक्ष में ले चलें।''

''बिल्कुल नहीं।'' एकदम बलवंतसिंह ने विरोध किया-''जो कहना है सबके सामने कहो - महाराज, यह दुश्मनों की ऐयारी भी हो सकती है।''

'हमें तो ऐसा नहीं लगता।'' दलीपसिंह ने कहा-''और अगर वास्तव में ये आदमी ऐयार है तो यहां दरबार के अन्दर आप सब लोगों के बीच ऐयारी करके जाएगा कहां - हम इसकी बात सुन लेने में किसी प्रकार का हर्ज नहीं समझते।''

फिर किसका साहस था कि राजा दलीपसिंह की इच्छा का विरोध करता।

अपने विशेष कक्ष में ले जाकर राजा दलीपसिंह ने पूछा-''कहो, क्या कहते हो?''

''महाराज, मेरा नाम बनारसीदास है। मैं आपके ही राज्य का व्यापारी हूं - मैं जंगल से गुजर रहा था कि मुझे ऐयार बलवंतसिंह दीखा। मैं उस समय दूर ही था, जब मैंने बलवंतसिंह को गुलबदनसिंह से बातें करते देखा।''

''गुलबदनसिंह और बलवंतसिंह साथ-साथ!'' दलीपसिंह चौंककर बोले-''ये तुम क्या कह रहे हो?''

''आप मेरा यकीन कीजिए महाराज, मैं बिल्कुल ठीक कह रहा हूं।'' मायादेवी ने उसी पुरुष स्वर में कहा-''मैं भी तो यही देखकर चौंका था कि हमारे महाराज का ऐयार गौरवसिंह के गुरु, गुरुवचनसिंह के साथ कैसे हैं - अत: मैंने भी सोचा कि आज क्यों न मैं भी महाराज के लिए ऐयारी का काम करूं? मैंने खुद एक पेड़ के तने के पीछे छुपकर उन दोनों की बातें सुनीं, उनकी बातें सुनकर मुझे पता लगा कि वास्तव में ये आदमी जो इस समय दरबार में है, असली बलवंतसिंह नहीं हैं, बल्कि हमारा ऐयार असली बलवंतसिंह तो कहीं कैंद में है और यह गौरवसिंह, का ऐयार गणेशदत्त यहां बलवंतसिंह की सूरत बनाकर आया है।''

''ये तुम क्या कह रहे हो?'' बुरी-तरह चौका दलीपसिंह।

''मैं बिल्कुल सत्य फरमा रहा हूं हुजूर।'' मायादेवी ने किसी साधारण व्यापारी की भांति ही सहमकर कहा।

''तुम्हारे पास कुछ सुबूत है?'' दलीपसिंह ने उसे घूरते हुए पूछा। -''सुबूत!'' वह इस प्रकार बोली, जैसे सोचने का प्रयास कर रही हो, फिर जैसे? एकदम याद आया हो-''अरे.. हां, याद आ गया!''

'बोलो।''

''मेरे ख्याल से गौरवसिंह इन दिनों आपके यहां कैद है।'' उसने कहा।

''गौरवसिंह का हमारी कैद में रहने से इस बात का क्या सम्बन्ध ?'' दलीपसिह ने कठोर स्वर में पूछा।

''कृपया आप मुझे बता दीजिए - गौरवसिंह इन दिनों आपकी कैद में है या नहीं?''

''हां है।''

''तो अब ये सोचिए कि यह बात हमें कैसे पता लगी?''

'बोलो?''

''गुरुवचनसिंह और नकली बलवंतसिंह की बातचीत से।'' मायादेवी ने कहा-''अब आप कृपा करके बिना बीच-बीच में रोक-टोक डाले मेरी वह सारी जानकारी सुन लीजिए जो मुझे पता है। यह मैं पहले ही बता दूं कि मुझे यह जानकारी उन दोनों की बातचीत से ही हुई है। मुझे पता लगा कि मुकरन्द नाम की कोई चीज है, जिसे आसपास के सब राजा और गौरवसिंह इत्यादि भी प्राप्त करना चाहते हैं। वह कोई बहुत ही महत्त्वपूर्ण वस्तु है, क्योंकि आप खुद भी उसकी तलाश में हैं। लेकिन यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि वह वस्तु आपके खास ऐयार बलवतसिंह पर है और वह आपको भी नहीं बताता कि मुकरन्द उसके पास है। कदाचित वह अकेला ही उससे कुछ लाभ उठाना-चाहता था कि किसी बख्ताबरसिंह ऐयार को यह मालूम हो गया कि मुकरन्द बलवन्तसिंह के पास है। उसने असली बलवंतसिंहं को गिरफ्तार कर लिया और बख्तावरसिंह ने अपने लड़के गुलबदनसिंह को यहां बलवंतसिंह बनाकर भेज दिया। एक टिन वह यहां रहा-- उधर असली बलवंतसिंह से मुकरन्द का पता पूछा जा रहा था, लेकिन बलवंतसिंह किसी भी प्रकार बता नहीं रहा था। बख्तावर को यह सन्देह था कि मुकरन्द बलवंतसिह ने महल में ही कहीं छुपा रखी होगी, अत: उसी की खोज में उसका लड़का गुलबदनसिंह यहां बलवंतसिह बनकर रहा। पिछली रात यहां मुकरन्द चुराने गौरवसिंह आया होगा।''

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