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देवकांता संतति भाग 1

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : राजा पॉकेट बुक्स प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2052
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

उधर.. देवसिंह के राज ज्वोतिषी ने गौरव और वन्दना को पालकर बड़ा कर दिया। उसने उन दोनों भाई-बहनों को ऐयारी के फन में भी माहिर कर दिया और उन्हें उनके दुश्मनों के विषय में भी बताता रहा। राज ज्योतिषी ने अपने ज्योतिष के हिसाब से बताया कि जेम्स गारनर अथवा आपके माता-पिता के केवल एक सन्तान आप यानी अलफांसे पैदा हुई है। उसने गौरव और वन्दना को ये भी बताया कि आप यानी अलफांसे अपने युग का सबसे बड़ा जांबाज और अन्तर्राष्ट्रीय अपराधी के रूप में विश्व विख्यात है। अथवा यूं कहिए कि उसने ज्योतिषी के हिसाब से सारी विशेषताएं जो आपके अन्दर हैं, गौरव और वन्दना को बता दीं।'' -''लेकिन तुम्हें ये सब सूचनाएं कैसे मिलीं?'' अलफांसे ने कहानी की सच्चाई जानने हेतु उसे घूरते हुए पूछा।

''हमारा अपना एक अलग ढंग होता है मिस्टर अलफांसे।'' बागीसिंह ने बताया-''जो दल गौरव, ज्योतिषी और वन्दना ने तैयार किया है, उसमें हमारा एक ऐयार भी है, वही हमें सूचनाएं देता हे। उसने यह समाचार भी भेजा कि गौरवसिंह ने अपने पिता की कसम ली है कि जब तक वह अपने पिता के हत्यारे के बेटे अलफांसे को अपने हाथ से कत्ल नहीं कर देगा, वह चैन से नहीं बैठेगा। दूसरी तरफ उसने.. दलीपसिंह से यह राज्य वापस लेने की कसम ली है। एक तरफ वह किसी प्रकार दलीपसिंह से अपना शासन छीनने के लिए कटिबद्ध है -- दूसरी तरफ वह आपकी खोज पूरे विश्व में कर रहा है. उसने आपके ऊपर पूरा एक खजाना इनाम रखा है - उसने घोषणा की है कि जो भी अलफांसे यानी आपका पता उसे देगा अथवा आपको जीवित अवस्था में पकड़कर उसके पास ले जाएगा उसे खजाना इनाम दिया जाएगा। वे चार सैनिक, जिनके बीच आप फंसे थे, वास्तव में गौरवसिंह के ही थे और आपका नाम सुनते ही वे चारों आपको गिरफ्तार करना चाहते थे।''

''लेकिन वे तो एक-दूसरे के ही दुश्मन बन गए?''

''खजाने के लालच में।'' बागीसिंह ने बताया-''इनमें से हर एक के दिमाग में आया कि वह अकेला ही इनाम का खजाना हड़प ले और इस चक्कर में वे एक दूसरे के ही दुश्मन बन गए।''

''उसी समय तुम इनके बीच दाल-भात में मूसरचंद की तरह प्रकट हो गए।'' अलफांसे ने गहरी दृष्टि से बागीसिंह को घूरते हुए कहा-''एक तो बेचारा पहले ही शहीद हो चुका था.. बाकी तीनों की हवा तुमने बन्दर दिखाकर खराब कर दी।''

''आप कहना क्या चाहते हैं?''

'यह कि अब तुम स्वयं अकेले ही वह खजाना हड़पना चाहते हो।''

''ये आप क्या कह रहे हैं?'' बागीसिंह एकदम इस प्रकार बोला, जैसे उसके इन शब्दों से उसे अनर्थ हो जाने का भय हो-''यह बात तो मैं स्वप्न में भी नहीं सोच सकता.. आप विश्वास कीजिए, मैं खजाने के चक्कर में अपना जमीर नहीं बेचूंगा।''

''क्यों -- ऐसी तुम्हारी मुझसे क्या दोस्ती है?''

''आपसे तो नहीं लेकिन हां.. मैं राजा दलीपसिंह के खास ऐयारों में से एक अवश्य हूं और इस नाते मैं गौरवसिंह का शत्रु हूं. दलीपसिंह का आदेश है कि अलफांसे यानी आपको किसी भी हालत में गौरव अथवा उसके ऐयारों के हाथ न लगने दिया जाए.. उन्होंने हमारे अर्थात् राज्य के सभी ऐयारों के बीच यह घोषणा की है कि जो ऐयार आपको सुरक्षित उनके समक्ष ले जाएगा, उसे वे ऐयार मण्डली का सरगना बना देंगे और इसे मैं अपना सौभाग्य ही कहूंगा कि यह काम मेरे ही द्वारा हो रहा है। मिस्टर अलफांसे, कृपया आप मेरी विनती स्वीकार कर लीजिए कि यहां से चलिए, अगर आप कहेंगे कि, आपको राजा दलीपसिंह के सामने ले जाने से पहले शेष जो रह गया है, वह भी बता दूं - तो फिलहाल आप यहां से मेरे घर चलिए, मैं सबकुछ वहां स्पष्ट बता दूंगा - उसके बाद कल सुबह आपको दरबार में पेश कर दिया जाएगा।''

अलफांसे ने घूरकर उसे देखा -- कदाचित् वह बागीसिंह के चेहरे पर उपस्थित भावों का अध्ययन करके यह पता लगाने की चेष्टा कर रहा था कि यह व्यक्ति सच्चा है अथवा उसे किसी गहरे जाल में फंसा रहा है। किन्तु अलफांसे को उसका चेहरा एकदम भावरहित लगा। अलफांसे ने सोचा - तमाशा घुसकर ही देखा जाए तो ही समझ में आ सकता है, अगर वह बाहर से सब कुछ समझने का प्रयास करेगा तो मस्तिष्क उलझता ही चला जाएगा - अत: उसने खतरा उठाने का पूरा निश्चय कर लिया -- वह प्रभावशाली स्वर में बोला-

''चलो, मैं तुम्हारे साथ चलता हूं लेकिन इस बात का ख्याल रखना कि मेरा नाम अलफांसे है। अगर तुम मेरे बारे में इतना सबकुछ जानते हो तो निश्चय ही यह भी जानते होंगे कि मैं किस टाइप का व्यक्ति हूं।'

''आप निश्चिन्त रहें - मैं हर कदम 'पर आपका दोस्त हूं।''

० ० ०

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