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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

दूसरा बयान


यह नया बयान छठे भाग के आखिरी बयान से आगे का समझना चाहिए। हमारे पाठकों को अच्छी तरह से याद होगा कि उस बयान में रामरतन और चंद्रप्रभा पिशाचनाथ को अपना पिता बख्तावरसिंह समझकर कलमदान का भेद बता रहे हैं। अब तक वे क्या-क्या बता चुके हैं यह हाल मुख्तसर में आप छठे भाग के कुछ आखिरी बयान पढ़कर ही जान सकते हैं। रामरतन वह हाल पिशाचनाथ के सामने बयान कर रहा था जो उसके पिता बंसीलाल ने कलमदान में रख छोड़ा था। जैसे ही रामरतन ने पिशाचनाथ को यह बताया कि दलीपसिंह ने मेघराज को यह आश्वासन दिया कि वह मेघराज की मदद के लिए पिशाचनाथ को भेजेगा - इतना सुनकर पिशाचनाथ चौंक पड़ा और उसने कहा- ''हमें तो यह गलत ही लगता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि बंसीलाल ने एक मनगढ़ंत कहानी बनाकर उस कलमदान में रख रखी हो और वह मेघराज को बेकार ही फंसाकर दोषी ठहराना चाहता हो? हम अच्छी तरह से जानते हैं कि पिशाचनाथ ने इस काम में मेघराज की मदद नहीं की - बल्कि वह तो इन बातों से वाकिफ भी नहीं है।''

पाठक समझ ही गए होंगे कि इतनी बड़ी बात उसने इसीलिए कह दी - क्योंकि वह खुद बख्तावरसिंह के भेस में पिशाचनाथ है।

छठे भाग का क़थानक पिशाचनाथ के उपरोक्त वाक्य पर ही खत्म हो जाता है। अव आप उससे आगे का हाल यहां इस नए बयान में पढ़िए।

''लेकिन आप यह बात इतने दावे से किस तरह कह सकते हैं?'' रामरतन ने कहा- ''आपको कैसे मालूम कि पिताजी (बंसीलाल) को पकड़ने में पिशाचनाथ मेघराज के साथ नहीं था - और फिर पिशाचनाथ इन सब बातों से विल्कुल भी वाकिफ तक नहीं है। भला आप इतनी बड़ी बात किस बूते पर कहते हैं?''

''पिशाचनाथ से आजकल हमारी बहुत अच्छी दोस्ती चल रही है।'' पिशाच ने बख्तावरसिंह की आवाज में बोलकर बात को संभालने की कोशिश करते हुए कहा- ''उससे कई बार तुम लोगों के बारे में बातें हुई हैं। अगर उसे इस बारे में जरा भी कुछ पता होता तो हमसे जरूर कहता। कलमदान में रखे कागजातों में वाकई बंसीलाल ने यह लिखा तो बंसीलाल ने मेघराज को फंसाने के लिए एक मनगढ़ंत कहानी कलमदान में बंद की है।''

''आप तो अधूरी बात सुनकर ही पिताजी (बंसीलाल) पर इतना वड़ा आरोप लगाने लगे।'' रामरतन हल्के-से मुस्कराता हुआ बोला- ''जरा आगे तो सुन लेते - पिताजी ने उन कागजातों में क्या लिखा है!''     

''क्या लिखा है?''

''आपको मैंने यहीं तक तो बताया है कि..।' रामरतन ने कहा- ''ठीक है दलीपसिंह मेघराज से बोले - मैं आज रात पिशाचनाथ को तुम्हारे पास भेज दूंगा।''

''हां!'' पिशाचनाथ बोला-- ''जबकि यह गलत है। हम नहीं मान सकते कि पिशाचनाथ ने इस काम में मेघराज की कोई मदद की है।''

''मैंने कब कहा कि पिशाचनाथ ने मेघराज की मदद की थी।'' रामरतन ने कहा।

''तुमने अभी तो कहा कि बंसीलाल ने कलमदान में मौजूद कागजों में यह लिखा है।''

''उन्होंने केवल इतना ही लिखा है कि दलीपसिंह ने मेघराज से पिशाचनाथ को भेजने के लिए कहा - लेकिन अपने कागजों में पिताजी ने आगे यह भी लिखा है कि उन दिनों पिशाचनाथ अपने घर से गायब था। दलीपसिंह ने उसे खोजने की बहुत कोशिश की - मगर वह न मिल सका और इसी सबब से मजबूर होकर दलीपसिंह ने मेघराज की मदद के लिए पिशाचनाथ की बजाए अपने ऐयार बलवंतसिंह को भेजा।''

ओह!'' बख्तावर बने पिशाचनाथ के कलेजे से जैसे एक भार-सा हटा, बोला- ''अधूरी बात सुनकर ही हम कितना गलत समझ बैठे थे। खैर.. तुम वह हाल आगे बयान करो। अब जहां तक भी हो सकेगा - हम तुम्हें बीच में बिल्कुल नहीं रोकेंगे।''

रामरतन ने अपना बयान जारी करते हुए कहा।

''ठीक है। मेघराज वोला- 'आप पिशाचनाथ को मेरी मदद के लिए भेज दें। बंसीलाल को हम उमादत्त के पास तक नहीं पहुंचने देंगे।''

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