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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

 

सातवाँ बयान


हम इस नये बयान में आज अपने पाठकों को राक्षसनाथ के तिलिस्म में ले जाते हैं। आप इस कथानक में न जाने कितनी बार इस तिलिस्म का नाम पढ़ चुके हैं। पढ़ें भी क्यों नहीं - आखिर सारा बखेड़ा इस तिलिस्म के चक्कर में ही तो है। रक्तकथा और मुकरन्द नाम के दो ग्रन्थों में इसी तिलिस्म को तोड़ने की तरकीब तो लिखी हैं। हमारे पाठकों को यह भी याद होगा कि पांचवें भाग के नवें और दसवें बयान में पिशाचनाथ अर्जुनसिंह को यह बता चुका है कि रक्तकथा राक्षसनाथ ने अपने खून से लिखी थी। उसमें कुछ ऐसी जटिल पंक्तियां थीं, जिसका मतलब साधारण ढंग से समझ में नहीं आता या। उन्हीं कठिन पंक्तियों को आसान बनाकर पिशाचनाथ के दादा भूतनाथ ने मुकरन्द में लिखा है। यह भी अब तक हमारे पाठक खुद ही समझ गये होंगे कि जो एक बार इस तिलिस्म में फंस जाता है, वह फंस ही जाता है। वह उस वक्त से पहले तिलिस्म से नहीं निकल सकता जब तक कि इस तिलिस्म का मालिक इस तिलिस्म को तोड़ न दे। खैर, अगर हम वह लिखने बैठ गये जो अपने कथानक के बारे में पहले लिख आये हैं तो कहानी अपनी जगह ही अटकी रहेगी। तभी तो हमने शुरू के बयानों में ही कहा था कि कथानक का एक भी बयान बेमकसद नहीं है। एक-एक बयान को ध्यान से पढ़ें तभी कहानी आगे समझ में आ सकेगी। खैर.. आपको ये तो याद होगा कि आपके देखते-ही-देखते बहुत से आदमी इस तिलिस्म में फंस गये हैं। जिनमें-जेम्स बांड, माइक, बागारोफ, हुचांग, टुम्बकटू और शैतानसिंह शामिल हैं। शैतानसिंह के अलावा बाकी के पांच आदमी तालाब के बाहर बने संगमरमर के हंस के पेट में पड़कर यहां आये। शैतानसिंह को पिशाचनाथ ने धोखे में डालकर उस हॉल में से तिलिस्म में फेंका, जिसमें वह बन्दर था, जिसके हाथ में से गौरवसिंह के चार ऐयार नाहरसिंह, बेनीसिंह, भीमसिंह और गुलशन नकली रक्तकथा को असली समझकर ले गये थे।

वैसे अगर देखा जाये तो हमने इस तिलिस्म की खूबी को खूब तोड़ा है। हम अपने पाठकों के साथ इस तिलिस्म में कई बार जा चुके हैं और बाहर भी आ चुके हैं। खैर, हमारी और हमारे पाठकों की तो कोई क्या कहे! लीजिये हम तो फिर तिलिस्म के अन्दर चल रहे हैं। सबसे पहले हमारी नजर इस तिलिस्म में फंसे जेम्स बांड पर पड़ती है। इस वक्त हम बांड का हाल वहीं से आगे लिखते हैं, जहां उसे छोड़ा था। (दूसरे भाग के पहले बयान) में बांड उसी कमरे में था - जिसमें संगमरमर के चबूतरे पर संगमरमर का हंस खड़ा था। हंस के ऊपर संगमरमर का ही शेर बैठा दिखाया गया था। हंस के माथे पर वह जन्मपत्री-सी बनी हुई थी - जिसकी नकल पाठकों को (दूसरे भाग के पहले ही पेज) पर दे आये हैं। हमारे ख्याल से पाठक वह बयान पढ़ने से पहले (दूसरे भाग का पहला बयान) जरुर पढ़ लें।

तभी इस बयान का असली लुत्फ उठा सकेंगे। खैर हम संक्षेप में यहां लिखे देते हैं।

जेम्स बांड उसी कमरे में बैठा अपने साथ गुजरी बातों को सोच रहा है। उसकी आखों के मामने सारी घटनायें चलचित्र की भांति तैर रही हैं - वो, बाहर तालाब की सीढ़ियों पर मौजूद् बगुले द्वारा निगल जाना। खुद को ऐसी कोठरी में पाना जहां उसने विजय की तस्वीर देरवी - फिर उस तस्वीर से निकलता संगीत। उसके कान मरोड़ने पर दो दरवाजे, उनमें से एक दरवाजे में से तो यही कमरा नजर आया था (हंस और शेर वाला) दूसरे में वह सफेद और काले चौकोरों वाली गैलरी जिसके दोनों तरफ संगमरमर के आदमी अजीब-अजीब तरह के हथियार लिये खड़े थे। संगमरमर के एक आदमी का डंडा उसके सिर में लगना। फिर उसका बेहोश होना। होश में आने पर सिंगही और जैक्सन की लाशों को बोलते देखना। वहां से डरकर भागना और इस कमरे में पहुंचना। जिस रास्ते से वह आया, उसका बन्द हो जाना, हंस के माथे पर बनी जन्मपत्री को समझने में दिमाग खपाना इत्यादि सब कुछ उसकी आंखों के सामने घूम गया। इस वक्त वह दरवाजा भी बन्द था, जो विजय की तस्वीर वाले कमरे की दायीं दीवार से इस कमरे में खुला था। बायां दरवाजा उस गैलरी में था, जिसमें कदम रखते ही वह संगमरमर के आदमी से डंडा खाकर बेहोश हो गया था। उसने यह कोशिश भी कर ली थी कि इस कमरे की दीवार में वही रास्ता चमक जाये जो विजय की तस्वीर वाले कमरे में खुलता या। काफी अच्छी तरह से जांच कर लेने के बावजूद भी उसे वह रास्ता नहीं मिला। थक-हारकर वह फिर उसी जन्मपत्री में दिमाग खपाने लगा। काफी माथापच्ची के बाद वह उसका मतलब समझ गया।

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