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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''क्यों?'' महादेवसिंह मुस्कराता हुआ बोला-''क्या चार ही दिन में बेगम बेनजूर वाली अकड़ आ गई?''

''ठहरो!'' अचानक किसी ने बात का सिलसिला बीच में रोक दिया। हाल बयान करती-करती शीला रुक गई। सब चौंककर उसकी तरफ देखने लगे। विजय ने इस तरह हाथ ऊपर उठा रखे थे मानो अब ज्यादा बकवास सुनना उसके बस में नहीं है। बोला-''बहुत देर से इस साली बेगम बेनजूर ने टिमाग की नसों का चूर्ण वना रखा है। शीला प्यारी, तुम बेगम बेनजूर का नाम अपने बयान में कुछ ज्यादा ही ले रही हो अब तक इतनी बार ले चुकी हो कि हमारा दिल फड़कने लगा है।''

''मैं आपका मतलब नहीं समझी महाराज, आप कहना क्या चाहते हैं?'' शीलारानी उसके सवाल करने के ढंग से चकरा गई थी।

''नहीं समझीं।'' विजय जल्दी-जल्दी बोला-''समझोगी भी नहीं। खैर-हम ही समझाए देते हैं--अब तुम इतना तो समझती ही होगी कि बेगम-सेगम ये जो कोई भी है, हम समझ रहे हैं कि वह कोई नारी है और नारी के मामले में हमारी राल टपकी-यानी कि हमारे दिमाग में खटकी। अपने किस्से में तुम इस बेगम बेनजूर पर वहुत जोर दे रही हो। बिलकुल इस तरह नाम आता है जैसे तोप का गोला हो। तुमने कहा कि तुम्हें बेगम बेनजूर बना दिया गया। पहले कहा था कलावती बेगम बेनजूर बनी खड़ी थी। बेगम बेनजूर का कमरा, बेगम बेनज़ूर की गद्दी-यानी कि साली बेगम बेनजूर न हो गई आंवले का अँचार हो गया।''

कई नए आदमी जो इस मजलिस में विजय के साथ पहली बार बैठे थे, उसकी इस अजीब बक चक को सुनकर चकरा गए-मगर गुरुवचनसिंह तब तक विजय की आदतों से काफी हद तक परिचित दो चुके थे। मुस्कराए और बोले-- 'महाराज, बेगम बेनजूर किसी औरत का नाम नहीं, बल्कि एक पद का नाम है। यहां शीला फंस गई थी, वहां गद्दी पर हमेशा कोई औरत ही बैठती है और उस गद्दी पर बैठकर जो भी औरत राज्य करती है उसे बेगम बेनजूर कहकर ही पुकारते हैं।''

''ओह!'' विजय बोला-''तो ये साली बेगम बेनजूर किसी एक औरत का नाम नहीं है, जो भी वहां राज्य करती है उसे ही बेगम बेनजूर कहते हैं जैसे हमारे भारत में जो सर्वोच्च अधिकारी होता है उसे राष्ट्रपति कहते हैं। यानी कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की तरह ही बेगम बेनजूर एक पद है। यानी वंदना अगर वहां की रानी हो-तो बेगम बेनजूर ही कहलाए।''

''जी हां।'' गुरुवचनसिंह ने कहा-''अब आप ठीक समझे हैं।''

(पाठकों को भी यह बात अच्छी तरह से ही समझ लेनी चाहिए।)

''चलो खैर समझ तो गए।'' विजय बोला-''हां तो शीलारानी, शुरू करो अपनी कहानी।''

जहां तक वह बता चुकी थी-वहां से आगे बोली-जव महादेवसिंह ने मुझसे कहा कि चार ही दिन में बेगम बेनजूर वाली अकड़ आ गई तो फिर मेरा चौंकना स्वाभाविक ही था। खुद ही बोली-''क्या मतलब?''

''ओह, तो अब मतलब भी बताना होगा।'' कहता हुआ वह मेरे पास बिस्तर पर बैठ गया, बोला-''खैर बताना पड़ेगा तो सुन ही लो-मुझे अच्छी तरह से मालूम है कि तुम वंदना नहीं हो।'' मैं अवाक्!

वह फिर बोला-''तुम समझती हो कि मैं ये बात नहीं जानता कि तुम यहां की महारानी नहीं हो, क्या तुम अभी तक इसी भुलावे में थी कि मैं वाकई तुम्हें रानी समझता हूं? नहीं शीला, मुझे शुरू से ही पता है कि तुम वंदना नहीं हो। यहां की रानी होने की तो बात ही क्या है? यहां की रानी तो वंदना भी नहीं है। मुझे अच्छी तरह से मालूम था कि तुम्हें गुरुवचनसिंह ने यह हुक्म देकर वंदना बनाया है कि किसी भी कीमत पर तुम यह भेद नहीं खुलने दोगी कि तुम वंदना नहीं शीला हो। अब जरा गौर से सुनो-तुम्हें गिरफ्तार करने वाले वे पांचों आदमी मेरे ही थे। तुम्हें जान-बूझकर वंदना की मूर्ति दिखाकर यह कहा था ये यहां की महारानी हैं। हालांकि वह सारा नाटक मेरा था। मैं अपनी बातों में तुम पर जबरदस्ती यह जाहिर कर रहा बा कि मैं तुम्हें यहां की महारानी वंदना समझता हूं। मुझे मालूम था कि तुम ये सब देख और सुनकर चौंकोगी-मगर बोलोगी कुछ नहीं-क्योंकि तुम्हारे दिमाग में यह बात आएगी कि मुमकिन है-रानी बनने में वंदना की कोई ऐयारी हो-इसी वजह से तुम उनमें से किसी बात को न झुठलाओगी-जो मैं कहूंगा, वही हुआ भी।''

उसकी ये अजीब उलझी हुई बात सुन, मेरी खोपड़ी घूम गई। कई सायत तक तो जैसे लगातार मुझे उसका चेहरा देखने के अलावा कुछ काम नहीं रहा। फिर खुद पर काबू पाकर बोली-''मैं समझी नहीं महादेवसिंह जी कि आप क्या कहना चाहते हैं?''

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