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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''बस कलमदान में मौजूद कागजों में इतना ही लिखा था।'' कहकर रामरतन चुप हो गया।

(प्यारे पाठको-आपको बखूबी याद होगा कि कलमदान का यह भेद रामरतन और चंद्रप्रभा पिशाचनाथ को बख्तावरसिंह समझकर सुना रहे थे। आपको यह बात याद रहे-इसी सबब से बीच-बीच में भी हम याद दिलाते रहे हैं। अगर फिर भी हमारा कोई पाठक असल चक्कर न समझ पाया हो तो छठे भाग का पांचवाँ बयान देख ले। कलमदान के भेद का यह किस्सा-उसी बयान से शुरू हुआ था। ध्यान रहे-रामरतन ने पिशाचनाथ को कलमदान का केवल भेद ही बताया है। उसने तब तक यह नहीं बताया है कि इस वक्त वह कलमदान कहाँ मौजूद है।)

''इसका मतलब इसके बाद यानी लखन में ही कलमदान को सील बंद करके बंसीलाल वहां से प्यादे के उस घर की ओर रवाना हुआ, जहां तुम दोनों थे। इसी रात तुम्हारे कमरे पर दस्तक हुई और उसने तुम्हें कलमदान सौंपा तथा तुम्हें वहां से निकाल दिया।''

''जी हां।''

''लेकिन-क्या तुम्हें वहां से निकलकर जंगल तक आने में किसी तरह की परेशानी हुई?'' पिशाचनाथ ने पूछा।

''जी नहीं।'' रामरतन ने कहा-''हमें तो रास्ते में सिपाही तक न टकराया।''

''लेकिन यह कैसे मुमकिन है?'' पिशाचनाथ बोला-''जव बंसीलाल के लिखे मुताबिक चमनगढ़ के चप्पे-चप्पे पर दारोगा के आदमी थे, तो फिर भला उनमें से कोई तुमसे क्यों नहीं टकराया? तुम किस तरह से इतनी आसानी से निकल सके थे?''

''मुमकिन है कि इसके लिए भी पिताजी ने कुछ उद्योग किया हो?'' रामरतन ने कहा।

''हां, हो सकता है-लेकिन ऐसा क्या उद्योग हो सकता है कि तुम्हें कोई मिला ही नहीं?''

''इस सवाल का जवाब भला मैं क्या दे सकता हूं?''

रामरतन ने कहा-''मुझे तो वही पता है जो कलमदान में लिखा है।

''खैर.. इस सवाल के जवाब के बारे में बाद में सोचेंगे।'' पिशाचनाथ बोला-''तुम जवाब दो कि जब तुमने कलमदान के सारे कागज पढ़ लिए तो तुम पर क्या गुजरी? तुमने क्या-क्या कदम उठाए और अब कलमदान कहां है?''

रामरतन पिशाचनाथ का चेहरा घूरने लगा।

 

० ० ०

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