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देवकांता संतति भाग 7

वेद प्रकाश शर्मा

प्रकाशक : तुलसी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 1997
पृष्ठ :348
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 2050
आईएसबीएन :0000000

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चंद्रकांता संतति के आधार पर लिखा गया विकास विजय सीरीज का उपन्यास...

''जी हां!'' रामरतन ने जवाब दिया-''एक-एक बात उसी तरह हुई थी, जिस तरह पिताजी ने कागजों में लिखी थी। जब पिताजी हमें प्यादे के भेस में मिले थे तो उन्होंने हमसे इसी किस्म की बातें की थीं, जैसी कि मैं आपको बता चुका हूं। इस वक्त तो हमें ख्वाब में भी उम्मीद न थी कि चक्कर इतना गहरा होगा। हमने वाकई पिताजी के कहे पर यकीन कर लिया था। न यकीन करने जैसी कोई बात ही नहीं थी। यह सब बातें तो हमें तभी पता चलीं जब कलमदान की सील तोड़कर उसमें से वे कागज पढ़े। अगर पहले इन बातों का पता लग जाता तो वह न होता जो आगे चलकर हुआ।''

''खैर, आगे बयान करो कि बंसीलाल ने अपने कागजों में इससे आगे क्या-क्या लिखा था?'' पिशाचनाथ ने सवाल किया!

''उन्होंने लिखा था कि'' रामरतन ने आगे बताना शुरू किया- ''मैं (बंसीलाल) दारोगा के घर पहुंचकर अपनी जगह तैनात हो गया। उस रात भी वहां रोजाना जैसी ही बातें हुईं। इस बात का किसी को गुमान तक भी न था कि उसके खास प्यादे के भेस में मैं बंसीलाल हूं और इसी प्यादे के घर में मेरा बेटा और बहू हिफाजत से हैं। अब तक आखिरी घटना आज से पहले दिन-यानी कंचन की हत्या के नौवें दिन की है।

उस वक्त मैं उसी प्यादे के भेस में वहां मौजूद था, जब खुद दलीपसिंह वहां आया। उसके आगमन की खबर खुद मैंने अंदर जाकर दारोगा को दी, दारोगा उसकी आगवानी करने के लिए बाहर आया और अंदर ले जाकर कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

मैंने कान किवाड़ों से सटा दिए।''

''आज पूरे नौ दिन हो गए।'' दलीपसिंह की आवाज मेरे कानों में पड़ी-''और हमें किसी तरह की भी कोई सफलता नहीं मिली है।''

''पता नहीं ये दुष्ट बंसीलाल कहां गायब हो गया?'' दारोगा बोला-''इतनी कोशिशों के बाद भी कहीं पर भी नहीं मिलता।''

''लेकिन इस तरह कब तक चलता रहेगा?'' दलीपसिंह बोला-''मान लो कि बंसीलाल साल-दो साल तक हमें न मिला तो क्या हम इसी तरह उसे तलाश करने में अपना वक्त बरबाद करते रहेंगे? कब तक-आखिर हम कब तक उसके डर से कुछ नहीं करेंगे?

''कई बार-यही बात मेरे भी दिमाग में आ चुकी है।'' मेघराज बोला-''लेकिन अभी इसका कोई हल नहीं सूझा।''

''इसका हल मेरे पास है।'' दलीपसिंह ने कहा-''अगर तुम मानो तो कहूं।''

''आप कैसी बात कर रहे हैं, महाराज?'' मेघराज बोला-''मेरी क्या मजाल कि मैं आपकी बताई तरकीब के मुताबिक काम न करूं, हुक्म कीजिए।''

''हमारे ख्याल से तो जब आज तक बंसीलाल कुछ नहीं कर सका तो अब क्या करेगा?'' दलीपसिंह बोला-''वाकई उसे अपना वही भेद खुल जाने का डर है जो तुमने हमें बताया था। हमारे ख्याल से तो जिस तरह हम लोगों ने कंचन को अपने रास्ते से हटाकर छुट्टी पा ली-उसी तरह उमादत्त की हत्या करके बखेड़ा ही खत्म कर देना चाहिए। उसके मरने के बाद तो सारे झंझट खुद ही खत्म हो जाएंगे। हमारे इस काम के बाद बंसीलाल हमारे खिलाफ-उन सुबूतों को धरकर ही चाटेगा।''

''मेरा ख्याल था कि पहले अपने खत और कलमदान हासिल कर लें और उसके बाद ये कदम उठाएं।''

''उससे फायदा क्या होगा?'' अपनी अक्लमंदी झाड़ता हुआ दलीपसिंह बोला-''इतने दिन की तलाश के बाद भी बंसीलाल को गिरफ्तार करके कलमदान हासिल करना तो दूर, यह भी भनक न लग सकी है कि वह गधे के सींग की तरह कहां गायब हो गया है? इस बात का दावा कोई भी नहीं कर सकता कि वह कब तक हमें मिल जाएगा-अथवा कभी मिलेगा भी या नहीं। उसके डर से हम भला कब तक अपना वक्त बरबाद करते रहेंगे। हमारा ख्याल तो यही है कि उमादत्त को खत्म कर देना चाहिए। उसके मरने के बाद बंसीलाल उन सुबूतों का भला क्या फायदा उठा सकेगा? उसे खुद ही पता चल जाएगा कि वे सुबूत कूड़ा हैं।''

''लेकिन अगर उसे हमारी योजना का पहले ही पता लग गया।'' मेघराज बोला- 'मेरा मतलब है कि अगर बंसीलाल किसी तरीके से यह जान गया कि हम उमादत्त की हत्या करने जा रहे हैं और उसने वे सुबूत हमारे हत्या करने से पहले उमादत्त के पास पहुंचा दिए तो?''

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