ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
समर शेष है
ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो,
किसने कहा, युद्ध की वेला गयी, शान्ति से बोलो?
किसने कहा, और मत बेधो हृदय वह्नि के शर से,
भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?
कुंकुम? लेप किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?
तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान।
फूलों की रंगीन लहर पर ओ उतरानेवाले !
ओ रेशमी नगर के वासी ! ओ छवि के मतवाले !
सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,
दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अँधियाला है।
मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,
ज्यों का त्यों हैं खड़ा आज भी मरघट-सा संसार।
वह संसार जहाँ पर पहुँची अब तक नहीं किरण है,
जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अम्बर तिमिर-वरण है।
देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्तस्तल हिलता है,
माँ को लज्जा-वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है।
पूछ रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज,
सात वर्ष हो गये, राह में अटका कहाँ स्वराज?
अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली ! तू क्या कहती है?
तू रानी बन गयी, वेदना जनता क्यों सहती है?
सबके भाग दबा रक्खे हैं किसने अपने कर में?
उतरी थी जो विभा, हुई वन्दिनी, बता, किस घर में?
समर शेष है, यह प्रकाश बन्दी-गृह से छूटेगा,
और नहीं तो तुझ पर पापिनी ! महावज्र टूटेगा।
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