ई-पुस्तकें >> परशुराम की प्रतीक्षा परशुराम की प्रतीक्षारामधारी सिंह दिनकर
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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...
(4)
जहाँ भी सुनो, वही आवाज़ है,
भारत में आज, बस, जीभ का स्वराज है।
और मन्त्री भी न अप्रमुख हैं।
एक कैबिनट के अनेक यहाँ मुख हैं।
एक कहता है, हाहाकार है,
दाम पै लगान कसो, देश की पुकार है।
दूसरे की मति अति शुद्ध है,
कहता है, नीति यह धर्म के विरुद्ध है।
गाँधीजी की याद नहीं टेक है?
पूँजीपति और जनता का भाग्य एक है।
आज़ादी की धार गहराने दो,
जो भी चाहता हो, उसे छूट के कमाने दो।
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