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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969
आईएसबीएन :81-85341-13-3

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


(37)
सब से पहले यह दुरित-मूल काटो रे !
समतल पीटो, खाइयाँ-खड्ग पाटो रे !
बहुपाद वटों की शिरा-सोर छाँटो रे !
जो मिले अमृत, सब को समान बाँटो रे !
वैषम्य घोर जब तक यह शेष रहेगा,
दुर्बल का ही दुर्बल यह देश रहेगा।

(38)
यह बड़े भाग्य की बात ! सिन्धु चंचल है,
मथ रहा आज फिर उसे मन्दराचल है।
छोड़ता व्यग्र फूत्कार सर्प पल-पल है,
गर्जित तरंग, प्रज्वलित वाडवानल है।
लो कढ़ा जहर ! संसार जला जाता है।
ठहरो, ठहरो, पीयूष अभी आता है।

(39)
पर, सावधान ! जा कहो उन्हें समझा कर,
सुर पुनः भाग जायें मत सुधा चुरा कर।
जो कढ़ा अमृत, सम-अंश बाँट हम लेंगे,
इस बार जहर का भाग उन्हें भी देंगे।
वैषम्य शेष यदि रहा, शान्ति डोलेगी,
इस रण पर चढ़कर महा क्रान्ति बोलेगी।

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