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परशुराम की प्रतीक्षा

रामधारी सिंह दिनकर

प्रकाशक : लोकभारती प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :80
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 1969
आईएसबीएन :81-85341-13-3

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रामधारी सिंह दिनकर की अठारह कविताओं का संग्रह...


(29)
सुर नहीं शान्ति आँसू बिखेर लायेंगे,
मृग नहीं, युद्ध का शमन शेर लायेंगे।
विनयी न विनय को लगा टेर लायेंगे,
लायेंगे तो वह दिन दिलेर लायेंगे।
बोलती बन्द होगी पशु की जब भय से,
उतरेगी भू पर शान्ति छूट संशय से।

(30)
वे देश शान्ति के सबसे शत्रु प्रबल हैं,
जो बहुत बड़े होने पर भी दुर्बल हैं,
है जिनके उदर विशाल, बाँह छोटी हैं,
भोथरे दाँत, पर जीभ बहुत मोटी है।
औरों के पाले जो अलज्ज पलते हैं,
अथवा शेरों पर लदे हुए चलते हैं।

(31)
सिंहों पर अपना अतुल भार मत डालो,
हाथियों ! स्वयं अपना तुम बोझ सँभालो।
यदि लदे फिरे, यों ही, तो पछताओगे,
शव मात्र आप अपना तुम रह जाओगे।
यह नहीं मात्र अपकीर्ति, अनय की अति है।
जानें, कैसे सहती यह दृश्य प्रकृति है !

(32)
उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है,
सुख नहीं, धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है ;
विज्ञान, ज्ञान-बल नहीं, न तो चिन्तन है,
जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है।
सब से स्वतंत्र यह रस जो अनघ पियेगा,
पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा।

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