ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
इसलिए मनुष्यके सोनेका स्थान आकाशके नीचे होना चाहिये। ओस और सर्दीसे बचनेके लिए हम काफ़ी ओढ़नेको रख सकते हैं। वर्षा ऋतुमें एक छातेकी सी छत भले ही रहे, मगर बाकी हर समय उसकी छत अगणित तारागणोंसे जडा हुआ आकाश ही होगा। जब आँख खुलेगी, वह प्रतिक्षण नया-नया दृश्य देखेगा। इस दृश्यसे वह कभी भी ऊबेगा नहीं। इससे उसकी आँखे चौंधियाएंगी नहीं बल्कि वे शीतलताका अनुभव करेंगी। तारागणोंका यह भव्य संघ उसे छता ही दिखाई देगा। जो मनुष्य उनके साथ सम्पर्क साधकर सोयेगा, उन्हें अपने हृदयका साक्षी बनायेगा, वह अपवित्र विचारोंको कभी अपने हृदयमें स्थान नहीं देगा और शान्त निद्राका उपभोग करेगा।
परंतु जिस तरह हमारे आसपास आकाश है, उसी तरह हमारे भीतर भी वह है। चमड़ीके एक-एक छिद्रमें और दो छिद्रोंके बीचकी जगहमें भी आकाश है। इस आकाशको-अवकाशको - भरनेका हम जरा भी प्रयत्न न करें। इसलिए आहार जितना आवश्यक हो उतना ही यदि हम लें तो शरीरको अवकाश रहेगा। हमें इस बातका हमेशा भान नहीं रहता कि हम कब अधिक या अयोग्य आहार कर लेते है। इसलिए अगर हम हफ्तेमें एक दिन या पखवारेमें एक दिन या सुविधासे उपवास करें, तो शरीरका सन्तुलन कायम रख सकते हैं। जो दिनका उपवास न कर सकें, वे एक या एकसे अधिक वक्तका खाना छोड़ने से भी लाभ उठायेंगे।
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