ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
३. आकाश
आकाशका ज्ञानपूर्वक उपयोग हम कमसे कम करते हैं। उसका ज्ञान भी हमें कमसे कम होता है। आकाशको अवकाश कहा जा सकता है। दिनमें अगर बादल न हों, तो ऊपरकी ओर देखने पर एन्क अत्यन्त स्वच्छ, सुंदर, आसमानी रंगका शामियाना नजर आता है। उस शामियानेको हम आकाश कहते हैं। इसका ही दूसरा नाम आसमान है न? इस शामियानेका कोई ओर-छोर देखनेमें नहीं आता। वह जितना हमसे दूर है, उतना ही हमारे नजदीक भी है। हमारे चारों ओर आकाश न हो, तो हमारा खातमा ही हो जाय। जहां कुछ भी नहीं है वहां आकाश है। इसलिए यह नहीं समझना चाहिये कि दूरदूर जो आसमानी रंग देखनेमें आता है, सिर्फ़ वही आकाश है। आकाश तो हमारे पाससे ही शुरू हो जाता है। इतना ही नहीं, वह हमारे भीतर भी है। खालीपन अथवा शून्य (vacuum) को हम आकाश कह सकते हैं। मगर सच तो यह है कि जो खाली नजर आता है, वह हवासे भरा हुआ है। यह भी सच है कि हम हवाको देख नहीं सकते। मगर हवाके रहनेका ठिकाना कहां है? हवा आकाशमें ही विहार करती है न? इसलिए आकाशसे हम अलग हो ही नहीं सकते। हवाको तो बहुत हद तक पम्प द्वारा खींचा भी जा सकता है, मगर आकाशको कौन खींच सकता है? यह सही है कि हम आकाशको भर देते हैं। मगर क्योंकि आकाश अनन्त है, इसलिए कितने भी शरीर क्यों न हों, सब उसमें समा जाते है।
इस आकाशकी मदद हमें आरोग्यकी रक्षाके लिए और उसे खो चुके हों तो फिरसे प्राप्त करनेके लिए लेनी है। जीवनके लिए हवाकी सबसे अधिक आवश्यकता है, इसलिए वह सर्व-व्यापक है। मगर हवा दूसरी चीजोंके मुकाबलेमें व्यापक तो है, पर अनन्त नहीं है। भौतिकशास्त्र हमें सिखाता है कि पृथ्वीसे अमुक मील ऊपर चले जायें, तो वहां हवा नहीं मिलती। ऐसा कहा जाता है कि इस पृथ्वीके प्राणियों जैसे प्राणी हवाके आवरणसे बाहर रह ही नहीं सकते। यह बात सच हो या न हो, हमें इतना ही समझना है कि आकाश जैसे यहां है, वैसे ही वह हवाके आवरणसे बाहर भी है। इसलिए सर्व-व्यापक तो आकाश ही है, फिर भले वैज्ञानिक लोग सिद्ध किया करें कि उस आवरणके ऊपर 'ईथर' नामका पदार्थ या कुछ और है। वह पदार्थ भी जिसके भीतर रहता है वह आकाश ही है। दूसरे शब्दोंमें यह कहा जा सकता है कि अगर हम ईश्वरका भेद जान सकें, तो आकाशका भेद भी जान सकेंगे।
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