ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
पर गीला निचोड़ा हुआ तौलिया रखना चाहिये। रोगीको सुलाकर तुरन्त कम्बलके किनारे और चद्दर चारों तरफ़से शरीर पर लपेट देने चाहिये। हाथ कम्बलोंके अन्दर होने चाहिये और पैर भी अच्छी तरह चद्दर और कम्बलोंसे ढंके रहने चाहिये, ताकि बाहरका पवन भीतर न जा सके। इस स्थितिमें रोगीको एक-दों मिनटमें ही गरमी लगनी चाहिये। सर्दीका क्षणिक आभासमात्र सुलाते समय होगा, बादमें तो रोगीको अच्छा ही लगना चाहिये। बुखारने अगर घर न कर लिया हो, तो पांचेक मिनटमें गर्मी लगकर पसीना छूटने लगेगा। परन्तु सख्त बीमारीमें मैंने आधे घंटे तक रोगीको इस तरह गीली चद्दरमें रखा है और अन्नमें उसे पसीना आया है। कभी-कभी पसीना नहीं छूटता, मगर रोगी सो जाता है। सो जाये तो रोगीको जगाना नहीं चाहिये। नीदका आना इस बातका सूचक हैं कि उसे चहर-स्तानसे आराम मिला है। चद्दरमें रखनेके बाद रोगीका बुखार एक-दो डिग्री तो नीचे उतरता ही है। मेरे (दूसरे) लड़केको डबल निमोनिया हो गया था और सन्निपात भी। ऐसी हालतमें मैंने उसे चद्दर-स्नान कराया। वह पसीनेसे तरबतर हो गया और तीन-चार दिन इस तरह करनेके बाद उसका बुखार उतर गया। उसका बुखार आखिर टाइफाइड सिद्ध हुआ और ४२ दिनके बाद ही पूरी तरह उतरा। चद्दर-स्नान जब तक बुखार १०६ तक जाता था तभी तक दिया गया। सात दिनके बाद इतना सख्त बुखार आना बन्द हो गया, निमोनिश मिट गया और टाइफाइडके रूपमें उसे 103 तक बुखार रहने लगा। हो सकता है कि बुखारके अंश (डिग्री) के बारेमें मेरी स्मरण-शक्ति; मुझे धोखा देता हो। यह उपचार मैंने डॉक्टर मित्रोंका विरोध करके किया था। दवा तो बिलकुल नहीं दी। आज मेरे चारो लड़कोंमें वह लड़का सबसे अधिक स्वस्थ है और सबसे अधिक श्रम करनेकी शक्ति रखता है।
शरीरमें घमोरी निकली हुई हो, पित्ती (prickly heat) निकली हुई हो, आमवात। (unticaria) निकला हो, बहुत खुजली आती हो, खसरा या चेचक निकली हो, तो भी यह चद्दर-स्नान काम देता है। मैंने इन सब रोगोंमें चद्दर-स्नानका उपयोग छूटसे किया है। चेचक या खसरेमें मैं पानीमें गुलाबी रंग आ जाय इतना परमेंगनेट डालता था। चद्दरका उपयोग हो जाने पर उसे उबलते पानीमें डाल देना चाहिये और जब पानी कुनकुना हो जाय, तब उसे अच्छी तरह धोकर सुखा लेना चाहिये।
रक्तकी गति मन्द पड़ गयी हो, या पांव टूटते हों, तब बरफ़ घिसने से बहुत फायदा होते मैंने देखा है। बरफके उपचारका असर गर्मीकी ऋतुमें अधिक अच्छा होता है। सर्दीकी ऋतुमें कमज़ोर मनुष्य पर बरफका उपचार करनेमें खतरा है।
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