ई-पुस्तकें >> आरोग्य कुंजी आरोग्य कुंजीमहात्मा गाँधी
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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख
अब मैं घर्षण-स्नान पर आता हूँ। जननेन्द्रिय बहुत नाजुक इन्द्रिय है। उसकी ऊपरकी चमड़ीके सिरेमें कुछ असत चीज है। उसका वर्णन करना मुझे नहीं आता है। इस ज्ञानका लाभ लेकर सुनेने कहा है कि इस इन्द्रियके सिरे पर (पुरुष हो तो सुपारी पर चमड़ी चढ़ाकर) नरम रूमालको पानीमें भिगोकर घिसते जाना चाहिये और पानी डालते जाना चाहिये। उपचारकी पद्धति यह बताई गई है : पानीके टबमें एक स्टूल रखा जाय। स्टूलकी बैठक पानीकी सतहसे थोड़ी ऊंची होनी चाहिये। इस स्टूल पर पांव टबसे बाहर रखकर बैठ जाना चाहिये और इन्द्रियके सिरे पर घर्षण करना चाहिये। उसे तनिक भी तकलीफ़ नहीं पहुंचनी चाहिये। यह क्रिया बीमारको अच्छी लगनी चाहिए। यह स्नान लेनेवालेको इस घर्षणसे बहुत शान्ति मिलती है। उसका रोग भले कुछ भी हो, उस समय तो वह शान्त हो ही जाता है। क्युनेने इस स्नानको कटि-स्नानसे भी ऊंचा स्थान दिया है। मुझे जितना अनुभव कटिस्नानका है, उतना घर्षण स्नानका नहीं है। इसमें मुख्य दोष तो मैं अपना ही मानता हूँ। मैंने घर्षण-स्नानका प्रयोग करनेमें आलस्य किया है। जिनको यह उपचार करनेकी मैंने सूचना की थी, उन्होंने धीरजसे इसका प्रयोग नहीं किया। इसलिए इस स्नानके परिणामके बारेंमें मैं निजी अनुभवसे कुछ नहीं लिख सकता। सबको इसे स्वयं आजमा कर देख लेना चाहिये। टब वगैरा न मिल सके, तो लोटेमें पानी भरकर भी घर्षण-स्नान किया जा सकता है। उससे शांति तो अवश्य ही मिलेगी। लोग इस इन्द्रियकी सफ़ाई पर बहुत कम ध्यान देते हैं। घर्षण-स्नानसे वह आसानीसे साफ हो जाती है। अगर ध्यान न रखा जाय, तो सुपारीको ढकनेवाली चमड़ीमें मैल भर जाता है। इस मैलको साफ़ करनेकी पूरी आवश्यकता है। जननेन्द्रियका उपयोग घर्षण-स्नानके लिए करने और उसे साफसुथरा रखनेसे ब्रह्मचर्य-पालनमें मदद मिलती है। इससे आसपासके तन्तु मज़बूत और शान्त बनते हैं और इस इन्द्रियके द्वारा व्यर्थ वीर्य-स्खलन न होने देनेकी सावधानी बढ़ती है, क्योंकि इस तरह स्राव होने देनेमें जो गंदगी रहती है, उसके लिए हमारे मनमें नफरत पैदा होती है, और होनी भी चाहिये।
इन दोनों खास स्नानोंको हम क्युने-स्नान कह सकते हैं। तीसरा ऐसा ही असर पैदा करनेवाला चद्दर-स्नान है। जिसे बुखार आता हो या किसी तरह भी नींद न आती हो, उसके लिए यह स्नान उपयोगी है।
खाट पर दो-तीन गरम कम्बल बिछाने चाहिये। ये काफ़ी चौड़ै होने चाहिये। इनके ऊपर एक मोटी सूती चद्दर-मोटी खादीका खेस-बिछाना चाहिये। इस चद्दरको ठंडे पानीमें भिगोकर और खूब निचोड़कर कम्बलों पर बिछाना चाहिये। इसके ऊपर रोगीको कपड़े उतारकर चित्त सुला देना चाहिये। उसका सिर कम्बलोंके बाहर तकिये पर रखना चाहिये और सिर
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