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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


जन्मदाता माता-पिता कोई त्यागी और संयमी नहीं होते। उनकी आदतें थोड़े-बहुत प्रमाणमें बच्चोंमें भी उतरती हैं। गर्भाधानके बाद माता जो खाती है, उसका असर बालक पर पड़ता ही है। फिर बाल्यावस्थामें माता बच्चेको अनेक स्वाद खिलाती है। जो कुछ वह स्वयं खाती है उसमें से बच्चे को भी खिलाती है। परिणाम यह होता है कि बचपन से ही पेट को बुरी आदतें पड़ जाती हैं। पड़ी हुई आदतों को मिटा सकने वाले विचारशील लोग थोड़े ही होते हैं। मगर जब मनुष्यको यह भान होता है कि वह अपने शरीरका संरक्षक है और उसने शरीरको सेवाके लिए अर्पण कर दिया है, तब शरीरको स्वस्थ रखनेके नियम जाननेकी उसे इच्छा होती है और उन नियमोंका पालन करने का वह महाप्रयास करता है।

ऊपरके दृष्टिबिन्दुसे बुद्धिजीवी मनुष्य के लिए चौबीस घंटेमें खुराकका नीचे लिखा प्रमाण योग्य माना जा सकता है :

१. गायका दूध दो पौंड।

२. अनाज छह औंस अर्थात् १५ तोला (चावल, गेहूँ बाजरा इत्यादि मिलाकर)।

३. शाकमें पत्ता-भाजी तीन औंस और दूसरे शाक पांच औंस।

४. कच्चा शाक एक औंस।

५. तीन तोले घी या चार तोले मक्खन।

५. गुड़ या शक्कर तीन तोले।

७. ताजे फल, जो मिल सकें, रुचि और आर्थिक शक्ति के अनुसार।

हर रोज दो नीबू लिये जायं तो अच्छा है। नीबू का रस निकालकर भाजीके साथ या पानीके साथ लेनेसे खटार्डका दांतों पर खराब असर नहीं पड़ेगा।

ये सब वजन कच्चे अर्थात् बिना पकाये हुए पदार्थोंके हैं। नमकका प्रमाण यहां नहीं दिया गया है। वह रुचि के अनुसार ऊपरसे लिया जा सकता है।

हमें दिनमें कितनी बार खाना चाहिये? बदुत लोग तो दिनमें केवल दो ही बार खाते हैं। सामान्यतः तीन. बार खानेकी प्रथा है-सवेरे काम पर बैठनेसे पहले, दोपहरको और शाम या रात्रिको। इससे अधिक बार खानेकी आवश्यकता नहीं होती। शहरोंमें रहनेवाले कुछ लोग समय-समय पर कुछ न कुछ खाते ही रहते हैं। यह आदत नुकसानदेह है। आमाशयको भी आखिर आराम चाहिए।

९-९-'४२
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