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आरोग्य कुंजी

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :45
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 1967
आईएसबीएन :1234567890

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गाँधी जी द्वारा स्वास्थ्य पर लिखे गये लेख


जैसे खुराकमें चिकनाईकी आवश्यकता रहती हैं, वैसे ही गुड और खांडकी भी। मीठे फलोंसे काफी मिठास मिल जाती है, तो भी तीन तोला गुड या खांड लेनेमें कोई हानि नहीं है। मीठे फल न मिले तो गुड़ और खांड़ लेनकी आवश्यकता रहती है। मगर आजकल मिठाई पर जो इतना जोर दिया जाता है, वह ठीक नहीं है। शहरोंमें रहनेवाले बहुत ज्यादा मिठाई खाते हैं, जैसे कि खीर, खड़ी, श्रीखंड, पेंडा, बर्फी, जलेबी वगैरा मिठाईयां। ये सब अनावश्यक हैं और अधिक मात्रामें खानेसे नुकसान ही करती हैं। जिस देशमें करोड़ों लोगोंको पेटभर अन्न भी नहीं मिलता वहां जो लोग पकवान खाते हैं, वे चोरीका माल खाते हैं, यह कहनेमें मुझे तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं लगती।

जो मिठाईक बारेमें कहा गया है, वह घी-तेलको भी लागू होता है। घी-तेलमें तली हुई चीजें खाना बिलकुल जरूरी नहीं है। पूरी, लड्डू वगैरा बनानेमें घी खर्च करना अविचारीपन है। जिन्हें आदत नहीं होती, वे लोग तो ये चीजें खा ही नहीं सकते। अंग्रेज जब हमारे देशमें आते हैं, तब हमारी मिठाइयां और घीमें पकाई हुई चीजें वे खा ही नहीं सकते। जो खाते हैं वे बीमार पड़ते हैं, यह मैंने कई बार देखा है। स्वाद तो सिर्फ आदतकी बात है। भूख जो स्वाद पैदा करती है, वह छप्पन भोगोंमें भी नहीं मिलता। भूखा मनुष्य सूखी रोटी भी बहुत स्वादसे खायेगा। जिसका पेट भरा हुआ हे, वह अच्छे से अच्छा माना जानेवाला पकवान भी नहीं खा सकेगा।

अब हम यह विचार करें कि हमें कितना खाना चाहिये और कितनी बार खाना चाहिये। सब खुराक औषधि के रूपमें लेनी चाहिये, स्वादके खातिर हरगिज़ नहीं। स्वाद मात्र रसमें होता है और रस भूख होता है। पेट क्या चाहता है, इसका पता बहुत कम लोगों को रहता है। कारण यह है कि हमें गलत आदतें पड़ गई हैं।

८-९-'४२

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