स्वास्थ्य-चिकित्सा >> अष्टांगहृदय अष्टांगहृदयवाग्भट
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आयुर्वेद के स्तम्भ ग्रंथ अष्टांगहृदय का पहला भाग
विकृतिर्दूतजं षष्ठं-
शारीरस्थान के अध्याय-शारीरस्थान के अध्यायों की गणना की जा रही है—१. गर्भावक्रान्ति, २. गर्भव्यापद्, ३. अङ्गविभाग, ४. मर्मविभागीय, ५. विकृतिविज्ञानीय तथा ६. दूतादिविज्ञानीय। ये अध्याय शारीरस्थान में हैं।। ३९॥
-निदानं सार्वरोगिकम्।
ज्वरासृक्श्वासयक्ष्मादिमदाद्यर्थोऽतिसारिणाम्॥४०॥
मूत्राघातप्रमेहाणां विद्रध्याद्युदरस्य च।
पाण्डुकुष्ठानिलार्तानां वातास्रस्य च षोडश ॥४१॥
निदानस्थान के अध्याय—निदानस्थान के अध्यायों की गणना की जा रही है—१.सर्वरोगनिदान, २. ज्वरनिदान, ३. रक्तपित्तकासनिदान, ४. श्वासहिक्कानिदान, ५. राजयक्ष्मानिदान, ६. मदात्ययनिदान, ७. अर्थोनिदान, ८. अतिसारग्रहणीरोगनिदान, ९. मूत्राघातनिदान, १०. प्रमेहनिदान, ११. विद्रधिवृद्धि-गुल्म-निदान, १२. उदररोगनिदान, १३. पाण्डुरोगशोफविसर्पनिदान, १४. कुष्ठश्वित्रक्रिमिनिदान, १५. वातव्याधि-निदान तथा १६. वातशोणितनिदान। ये अध्याय निदानस्थान में हैं।। ४०-४१।।
चिकित्सितं ज्वरे रक्ते कासे श्वासे च यक्ष्मणि।
वमौ मदात्ययेऽर्शःसु, विशि द्वौ, द्वौ च मूत्रिते॥
विद्रधौ गुल्मजठरपाण्डुशोफविसर्पिषु।
कुष्ठश्वित्रानिलव्याधिवातास्रेषु चिकित्सितम् ॥४३॥
द्वाविंशतिरिमेऽध्यायाः-
चिकित्सितस्थान के अध्याय-चिकित्सितस्थान के अध्यायों की गणना की जा रही है—१. ज्वर, २. रक्तपित्त, ३. कास, ४. श्वासहिक्का, ५. राजयक्ष्मादि, ६. छर्दिहृद्रोगतृष्णा, ७. मदात्ययादि, ८. अर्शसां चिकित्सित, ९. अतिसार, १०. ग्रहणीरोग, ११. मूत्राघात, १२. प्रमेह, १३. विद्रधिवृद्धि, १४. गुल्म, १५. उदर, १६. पाण्डुरोग, १७. श्वयथु, १८. विसर्प, १९. कुष्ठ, २०. श्वित्रक्रिमि, २१. वातव्याधि तथा २२. वातशोणित। ये अध्याय चिकित्सितस्थान में हैं।। ४२-४३।।
-कल्पसिद्धिरतः परम्।
कल्पो वमेर्विरेकस्य तत्सिद्धिर्बस्तिकल्पना॥४४॥
सिद्धिर्बस्त्यापदां षष्ठो द्रव्यकल्पः-
कल्प-सिद्धिस्थान के अध्याय—कल्प-सिद्धिस्थान के अध्यायों की गणना की जा रही है—१. वमनकल्म, २. विरेचनकल्प, ३. वमनविरेचनसिद्धि, ४. बस्तिकल्प, ५. बस्तिव्यापत्सिद्धि तथा ६. भेषजकल्प। ये अध्याय कल्प-सिद्धिस्थान में हैं।। ४४।।
-अत उत्तरम्।
बालोपचारे तद्व्याधौ तद्ग्रहे, द्वौ च भूतगे॥४५॥
उन्मादेऽथ स्मृतिभ्रंशे, द्वौ द्वौ वर्त्मसु सन्धिषु।
दृक्तमोलिङ्गनाशेषु त्रयो, द्वौ द्वौ च सर्वगे॥४६॥
कर्णनासामुखशिरोव्रणे, भङ्गे भगन्दरे।
ग्रन्थ्यादौ क्षुद्ररोगेषु गुह्यरोगे पृथग्द्वयम् ॥ ४७॥
विषे भुजङ्गे कीटेषु मूषकेषु रसायने।
चत्वारिंशोऽनपत्यानामध्यायो बीजपोषणः॥४८॥
उत्तरस्थान के अध्याय-उत्तरस्थान के अध्यायों की गणना की जा रही है—१. बालोपचरणीय, २. बालामयप्रतिषेध, ३. बालग्रहप्रतिषेध, ४. भूतविज्ञानीय, ५. भूतप्रतिषेध, ६. उन्मादप्रतिषेध, ७. अपस्मार-(स्मृतिभंश)प्रतिषेध, ८. वर्मरोगविज्ञानीय, ९. वर्मरोगप्रतिषेध, १०. सन्धिसितासितरोगविज्ञानीय, ११. सन्धिसितासितरोगप्रतिषेध, १२. दृष्टिरोगविज्ञानीय, १३. तिमिरप्रतिषेध, १४. लिङ्गनाशप्रतिषेध, १५. सर्वाक्षिरोगविज्ञानीय, १६. सर्वाक्षिरोगप्रतिषेध, १७. कर्णरोगविज्ञानीय, १८. कर्णरोगप्रतिषेध, १९. नासा- रोगविज्ञानीय, २०. नासारोगप्रतिषेध, २१. मुखरोगविज्ञानीय, २२. मुखरोगप्रतिषेध, २३. शिरोरोगविज्ञानीय, २४. शिरोरोगप्रतिषेध, २५. व्रणविज्ञानीय, २६. सद्योव्रणप्रतिषेध, २७. भङ्गप्रतिषेध, २८. भगन्दरप्रतिषेध, २९. ग्रन्थि-अर्बुद-श्लीपद-अपची-नाड़ीविज्ञानीय, ३०. ग्रन्थि-अर्बुद-श्लीपद-अपची-नाड़ी-प्रतिषेध, ३१. क्षुद्ररोगविज्ञानीय, ३२. क्षुद्ररोगप्रतिषेध, ३३. गुह्यरोगविज्ञानीय, ३४. गुह्यरोगप्रतिषेध, ३५. विषप्रतिषेध, ३६. सर्पविषप्रतिषेध, ३७. कीटलूतादिप्रतिषेध, ३८. मूषिकलार्कविषप्रतिषेध, ३९. रसायनाध्याय तथा ४०. वाजीकरणाध्याय। ये अध्याय उत्तरस्थान में हैं।।४५-४८।।
इत्यध्यायशतं विंशं षड्भिः स्थानैरुदीरितम्।।
इति श्रीवैद्यपतिसिंहगुप्तसूनुश्रीमद्वाग्भटविरचितायामष्टाङ्गहृदयसंहितायां
प्रथमे सूत्रस्थाने आयुष्कामीयो नाम प्रथमोऽध्यायः॥१॥
अष्टांगहृदय के छः स्थान- इस प्रकार सम्पूर्ण अष्टांगहृदय के १२० अध्यायों की नाम-गणना उक्त (१. सूत्र, २. शारीर, ३. निदान, ४. चिकित्सित, ५. कल्प-सिद्धि तथा ६. उत्तर नामक) छ: स्थानों में कर दी गयी है।॥४८॥
इस प्रकार वैद्यरत्न पण्डित तारादत्त त्रिपाठी केपुत्र डॉ० ब्रह्मानन्द त्रिपाठी द्वारा विरचित 'निर्मला' हिन्दी व्याख्या, विशेष वक्तव्य आदि से विभूषित अष्टांगहृदय-सूत्रस्थान में आयुष्कामीय नामक पहला अध्याय समाप्त।।१।।
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