आचार्य श्रीराम शर्मा >> व्यक्तित्व परिष्कार की साधना व्यक्तित्व परिष्कार की साधनाश्रीराम शर्मा आचार्य
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नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
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तत्त्व बोध साधना
यह साधना शयन के पूर्व की जाती है। यह प्रात: जागते ही की जाने वाली आत्मबोध साधना की पूरक सधना है। आत्मबोध सारे दिन और तत्वबोध से सारी रात साधक साधना रूढ़ रह सकता है।
लगता है, रात्रि में सो जाने पर क्या होगा? किन्तु मनुष्य के तंत्र का एक बहुत छोटा अंश ही सोते समय शान्त होता है। शेष पाचन, श्वास, हृदय, शरीर, पोषण क्रम सभी चलते रहते हैं। स्वप्न के माध्यम से व्यक्तित्व सक्रिय भी बना रहता है। इसलिए जब आँखैं और कान के माध्यम से साधना में विघ्न डालने वाले स्रोत बद हो जाते है? तो जीव-चेतना को दिव्य चेतना के साथ आदान-प्रदान करने के लिए अधिक अनुकूलता प्राप्त होती है।
सारे कार्यों से निवृत्त होकर बिस्तर पर पल्थिा लगाकर बैठे। इष्ट या गुरु का ध्यान करके उनकी साक्षी में अपने दिनभर के क्रिया-कलापों की समोक्षा करनी चाहिए। भूलों के लिए क्षमा-पश्चात्ताप-प्रायश्चित्त जैसे क्रम बनाने चाहिए।
इसके बाद विचार करना चाहिए कि निद्रा भी एक प्रकार की मृत्यु है। संसार का और अपने स्थूल शरीर का अस्तित्व बोध उस बीच समाप्त हो जाता है। संसार, घर-परिवार-इन सबकी रक्षा सोता हुआ व्यक्ति भी नहीं कर सकता। इसे मृत्यु स्थिति मानकर सब कुछ परमात्मचेतना को सौंपकर निश्चिन्त भाव से नींद-मृत्यु की गोद में जाने की मनोभूमि बनाना चाहिए। अब शान्ति से ओढ़कर लेट जायें, दोनों पैर और पंजे मिलाकर सीधे लेटे। दोनों हाथ (आधी मुट्ठी बन्द) छाती के ऊपर रखें। ध्यान मुद्रा में आँखें बन्द कर लें। इस प्रकार सब प्रभु को सौपकर स्वयं भी उसी की गोद में समा जाने का भाव करते हुए जिधर मन कहे, उधर करवट लेकर निद्रा की गोद में जाना चाहिए।
प्रार्थना करनी चाहिए यह शरीर, मन आदि यदि पुन: हमें दें, तो इस .अबकी अपेक्षा अधिक अनुशासित स्फूर्तिवान और सक्षम बना कर दें ताकि आपके निर्देशों का परिपालन अधिक तत्परता से किया जा सके।
यह साधना साधक को योगनिद्रा की स्थिति में ले जाती है। साधकों के शरीर, मन, अन्तःकरण में दिव्य संचार करने का सुयोग मिल जाता है सबेरे जागने पर साधक एक विशिष्ट स्कूर्ति उमंग, संतोष की के से सारे तना-नें से मुक्ति अनुभूति करता है। इस प्रकार शयन अभ्यास व भी मिलती है तथा अनेक सम्भावित रोगों से बचाव भी हो जाता है।
नौ दिन की यह सत्र-साधना नवग्रहों की शान्ति, नवरलों की प्राप्ति, नवधा भक्ति वर्षा, नवाह परायण नवरात्रि अनुष्ठान जैसा है यह सुयोग परमात्मा के विशेष तथा पिछले पुण्य-फलदायक। अनुग्रह जन्मों के पुण्य फलस्वरूप ही मिलता है, उसे सफल और सार्थक करने के लिए शान्तिकुंज मे निर्धारित दैनिक कार्यक्रम साधक को उच्चस्तरीय व्यक्तित्व प्रदान करते हैं। प्रतिदिन प्रातःकाल वंदनीया माता जी के प्रणाम के समय पू० गुरूदेव की कारणसत्ता सायुज्य उपस्थित रहती है। यज्ञ के उपरान्त मनुष्य जीवन की गरिमा और जीवन-साधना का पुण्य लाभ प्राप्त करने के लिए मार्गदर्शन प्रधान प्रवचन किए जाते हैं। एक दिन प्रायश्चित्य विधान के निष्कासन तप दस स्नान हेमाद्रि संकल्प तथा इष्टापूर्ति वत के लिए नियत होता है। प्रायश्चित्य की एक क्रिया सामूहिक श्रमदान की, सभी को अपराह्न करनी पड़ती है। ब्रह्मवर्चस में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शोध-प्रयोग का क्रम चलता है, जिसमें अपनी साधना का परीक्षण होता है। शरीर में जड़ जमाये बैठे, भव रोगों का निदान भी होता है। वंदनीया माता जी से भेंट का सभी को सुयोग मिलता है। गंगादर्शन तथा एक दिन समीपवर्ती तीर्थों के परिभ्रमण का अवकाश भी रहता है।
उपरोक्त समस्त दैनिक क्रम का अधिक से अधिक लाभ तब मिलता है, जब साधक उनमें सा हुआ रमा हुआ रहे। ध्यान एक प्रकार की परिप्रेषण क्रिया है, जिसमें साधक अपनी ओर जितना परिप्रेषित करता है, उतना ही वापिस लौटकर मिलता है। भगवान को सर्वस्व सौंपनेवाले उनकी सारी शक्तियों के स्वामी बनते हों, पर जो मन में सन्देह पाले रहते हैं दें या न दंडनके प्रति परमात्मा भी मुस्कुराता रहता है। गंगा में कूदे बिना शीतलता, शान्ति तृप्ति पाना तो दूर,शरीर का मैल भी नहीं छूटता। जन्म-जन्मान्तरों का मैल छुड़ाने के लिए नौ दिन अपनी साधना प्रधान दिनचर्या में पूरी तरह डूबे रहने वाले यहाँ से इतना लेकर लौटते हैं जिसके लिए हजार वर्षों तक साधना करने पर भी न मिलेगा।
एक विशेष लाभ यहीं परम पूज्य गुरुदेव की कारण सत्ता तथा हिमालय के ध्रुव केन्द्र से इन दिनों सतत प्रवाहित होने वाली प्राण ऊर्जा का है, वह यहाँ निवास कर रहे किसी को भी अनायास ही मिलता है, उसके लिए किसी को कहने की-आग्रह करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
आपके जीवन का यह सुयोग आप को धन्य बनायेगा-ऐसा हमारा सुनिश्चित विश्वास है।
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- नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
- निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
- आत्मबोध की साधना
- तीर्थ चेतना में अवगाहन
- जप और ध्यान
- प्रात: प्रणाम
- त्रिकाल संध्या के तीन ध्यान
- दैनिक यज्ञ
- आसन, मुद्रा, बन्ध
- विशिष्ट प्राणायाम
- तत्त्व बोध साधना
- गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
- गायत्री उपासना का विधि-विधान
- परम पू० गुरुदेव पं० श्रीराम शर्मा आचार्य एवं माता भगवती देवी शर्मा की जीवन यात्रा