आचार्य श्रीराम शर्मा >> मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधान मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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इसमें मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म विधानों का वर्णन किया गया है.....
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देव तर्पण
देव शक्तियाँ ईश्वर की वे महान् विभूतियाँ हैं, जो मानव-कल्याण मंे सदा नि:स्वार्थ भाव से प्रयत्नरत हैं। जल, वायु, सूर्य, अग्नि, चन्द्र, विद्युत् तथा अवतारी ईश्वर अंशों की मुक्त आत्माएँ एवं विद्या, बुद्धि, शक्ति, प्रतिभा, करुणा, दया, प्रसन्नता, पवित्रता, जैसी सत्प्रवृत्तियाँ सभी देव शक्तियों में आती हैं। यद्यपि ये दिखाई नहीं देतीं, तो भी इनके अनन्त उपकार हैं। यदि इनका लाभ न मिले, तो मनुष्य के लिए जीवित रह सकना भी सम्भव न हो। इनके प्रति कृतज्ञता की भावना व्यक्त करने के लिए यह देव-तर्पण किया जाता है।
यजमान दोनों हाथों की अनामिका अँगुलियों में पवित्र धारण करें। हाथ में जल-अक्षत लेकर नीचे लिखे मन्त्र से देव आवाहन करें।
ॐ आगच्छन्तु महाभागा, विश्वेदेवा महाबलाः।
ये तर्पणेऽत्र विहिताः, सावधाना भवन्तु ते॥
जल में चावल डालें। कुश-मोटक सीधे ही लें। यज्ञोपवीत सव्य (बायें कन्धे पर) सामान्य स्थिति में रखें। तर्पण के समय अंजलि में जल भरकर सभी अँगुलियों के अग्र भाग के सहारे अर्पित करें। इसे देवतीर्थ मुद्रा कहते हैं। प्रत्येक देवशक्ति को एक-एक अंजलि जल डालें। पूर्वाभिमुख होकर देते चलें।
ॐ ब्रह्मादयो देवाः आगच्छन्तु गृणन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।
ॐ ब्रह्मा तृप्यताम्।
ॐ विष्णुस्तृप्यताम्।
ॐ रुद्रस्तृप्यताम्।
ॐ प्रजापतिस्तृप्यताम्।
ॐ देवास्तृप्यन्ताम्।
ॐ छन्दांसि तृप्यन्ताम्।
ॐ वेदास्तृप्यन्ताम्।
ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम्।
ॐ पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम्।
ॐ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम्॥
ॐ इतराचार्यास्तृप्यन्ताम्।
ॐ संवत्सरः सावयवस्तृप्यताम्।
ॐ देव्यस्तृप्यन्ताम्।
ॐ अप्सरसस्तृप्यन्ताम्।
ॐ देवान्गास्तृप्यन्ताम्।
ॐ नागास्तृप्यन्ताम्॥
ॐ सागरास्तृप्यन्ताम्।
ॐ पर्वतास्तृप्यन्ताम्।
ॐ सरितस्तृप्यन्ताम्।
ॐ मनुष्यास्तृप्यन्ताम्।
ॐ यक्षास्तृप्यन्ताम्।
ॐ रक्षांसि तृप्यन्ताम्।
ॐ पिशाचास्तृप्यन्ताम्।
ॐ सुपर्णास्तृप्यन्ताम्।
ॐ भूतानि तृप्यन्ताम्।
ॐ पशवस्तृप्यन्ताम्।
ॐ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्।
ॐ ओषधयस्तृप्यन्ताम्।
ॐ भूतग्रामः चतुर्विधस्तृप्यताम्।
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- ॥ मरणोत्तर-श्राद्ध संस्कार ॥
- क्रम व्यवस्था
- पितृ - आवाहन-पूजन
- देव तर्पण
- ऋषि तर्पण
- दिव्य-मनुष्य तर्पण
- दिव्य-पितृ-तर्पण
- यम तर्पण
- मनुष्य-पितृ तर्पण
- पंच यज्ञ