आचार्य श्रीराम शर्मा >> जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँ जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँश्रीराम शर्मा आचार्य
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जन्मदिवस को कैसे मनायें, आचार्यजी के अनुसार
तैयारी और व्यवस्था
आयोजन का समय दो या तीन घण्टे का रखा जाय। इसमें आधा समय धार्मिक कर्मकाण्ड के लिए और आधा प्रेरणाप्रद प्रवचनों के लिए सुनिश्चित रहे। इस कार्य में पड़ी का सही उपयोग किया जाय। दोनों में से किसी विभाग में इतना अधिक समय न लगे कि दूसरी बात को अधूरा छोड़ना पड़े। प्रात: २ बजे से पूर्व अथवा सायंकाल सूर्य अस्त के बाद का समय सबके लिए सुविधा का रहता है। नौकरी, व्यवसाय या अन्य काम करने वाले प्राय: नौ बजे बाद ही अपने कामों पर जाते हैं और दिन छिपे तक घर आ जाते हैं। सुविधा के समय आयोजन रहे तो अधिक लोग आसानी से उपस्थित हो सकते हैं।
जन्मोत्सव के धार्मिक कर्मकाण्ड में गायत्री हवन, सामूहिक प्रार्थना, गायन, युग निर्माण के सत्संकल्प का सामूहिक पाठ आदि प्रमुख हैं। उसके लिए हवन वेदी को रंग-बिरगे चौक पूर कर सजाया जाय। हो सके तो बाँस गाड़ कर रंगीन कपड़े का झल्लर लगा हुआ मण्डप बना लिया जाय। वन्दनवार, पल्लव, पुष्प, झण्डियाँ, महापुरुषों के चित्र, आदर्श वाक्य आदि से यह स्थान सुसज्जित कर दिया जाय। वातवरण जितना आकर्षक होगा उतना ही प्रभावशाली भी रहेगा। बैठने वालों के लिए बिछौने आदि यथोचित साधन रहें।
पूजा कर्मकाण्ड में आने वाली सभी वस्तुओं शाखा संगठन को खरीद कर रख लेनी चाहिए। कलश, चौकियाँ, यज्ञ के काष्ठ-पात्र, पंच-पात्र, आचमनी, हवन की थालियाँ, मृत-पात्र, दीपक, आरती, आदर्श वाक्य, शंख-घड़ियाल, आरती आदि सभी चीजें संगठन के पास हो, जिनका टूट-फूट के लिए उचित किराया लेकर हर आयोजनकर्त्ता को देते रहा जाय। ले जाने और ५ वापिस करने की जिम्मेदारी भी उसी की रहे। हवन के उपयुक्त सूखी समिधायें तथा हवन सामग्री विक्रय के लिए प्रस्तुत रहे। रोली, चावल, कलावा, गंध, अक्षत, अगरबत्ती, पुष्प, यज्ञोपवीत, चन्दन आदि जो चीजें बार-बार काम में आती हैं, वह भी शाखा में उपलब्ध रहें। उत्सव मनाने वाले को तो पंचामृत के लिए दूध-दही, पुष्प, घी आदि तत्काल मिल सकने वाली वस्तुओं को ही गंगाने के लिए कहा जाय, जिससे उसे दौड़-धूप की परेशानी न उठानी पड़े।
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