लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँ

जन्मदिवसोत्सव कैसे मनाएँ

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15497
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

जन्मदिवस को कैसे मनायें, आचार्यजी के अनुसार

उत्सव अधिक खर्चीले न हों


इन उत्सवों को कम से का खर्चीला रखना चाहिए, ताकि हर कोई उसका आयोजन बिना किसी कठिनाई के कर सके। एक के यहाँ मँहगा खर्चीला तरीका अपनाया जाय तो दूसरों को वैसा अनुकरण न करने में अपनी बेइज्जती अनुभव होती लै। इसलिए वे आर्थिक बचत का ध्यान रखकर उस आयोजन से हो कतराने लगते हैं। षोडश संस्कारों की पुनीत परम्परा का नाश इसी प्रकार हुआ। पण्डितों ने उन्हें बहुत मँहगे और खर्चीले बना दिया, फलतः लोग उसकी उपेक्षा करने लगे, जो लकीर पीटने के लिए करते भी हैं वे मन ही मन कुडुकुड़ाते जाते हैं। यज्ञोपवीत संस्कार की प्रथा मँहगेपन के कारण ही समाप्त हो चली है, उसे कुछ क्षेत्रों में कुछ सम्पन्न ब्राह्मण ही विधिवत् करा सकते हैं। यह भूल हमें नहीं करनी चाहिए और आरम्भ से ही ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें जितना अधिक सस्ता एवं सुलभ बनाया जा सकता हो बनाया जाय। कोई आन्दोलन लोकप्रिय तभी हो सकता है, जब वह उपयोगिता के साथ-साथ सस्ता भी हो।

साप्ताहिक या सामूहिक यज्ञों में प्रथा चलती है कि जितने भी व्यक्ति उपस्थित होते हैं वे सभी आहुतियाँ देने बैठते हैं। उनमें समय बहुत लगता है और पैसा भी बहुत खर्च होता है। होना यह चाहिए कि यजमान और उसकी पत्नी हो आहुतियाँ देने बैठें। एक घी ले ले, दूसरा सामग्री। पति या पत्नी न हों तो दूसरा कोई कुटुम्बी बिठाया जा सकता है। दो व्यक्तियों द्वारा किया जाने वाला हवन काफी सस्ता रहता है। एक रुपये के लगभग में काम चल जाता है। पूर्णाहुति में थोड़ी-थोड़ी सामग्री सभी लोग चढ़ा दें। इससे उस यज्ञ में उनका भी सम्मिलित होना मान लिया जायगा। मन्त्रोच्चारण सभी लोग करें तथा घूत अवध्राण भस्मधारण, क्षमाप्रार्थना, प्रदक्षिणा आदि में सभी लोग भाग लें। इस प्रकार हवन के सम्बन्ध में जो मँहगेपन की शिकायत है वह दूर हो जायगी और यह यज्ञों की महत्ता, लोकप्रियता एवं व्यापकता बढ़ायेगी।

दूसरा खर्च इन उत्सवों के समय अतिथि सत्कार का होता है। इसके लिए सुपाड़ी, इलायची, सौंफ जैसी चीजों को पर्याप्त मानना चाहिए। अधिक से अधिक गर्मियों में शरबत और जाड़ों में तुलसी कीं चाय जैसा कोई उष्ण पेय रखा जा सकता है। मिठाई, पकवान, फल आदि मँहगी चीजें कड़ाई के साथ अस्वीकार की जायें। यज्ञ-प्रसाद में पच्चामृत, पंजीरी या यज्ञ विशिष्ट खीर एक पत्ते पर दी जा सकती है। ध्यान यही रखा जाय कि अधिक संख्या में उपस्थित हो जाने पर भी किसी निर्धन को भी आर्थिक भार अनुभव न हो। गरीब, अमीर सभी के यहाँ एक जैसी परम्परा अपनाई जानी चाहिए, ताकि किसी को अनावश्यक गर्व एवं हीनता का अनुभव न होने पावे।

आगन्तुकों में से प्रत्येक को पुष्पहार, गुलदस्ता या कुछ फूल लेकर आना चाहिए। जो न ला सके उनके लिए उत्सव स्थल पर भी वह मिल सकने की व्यवस्था रहनी चाहिए। शुभकामना का प्रतीक पुष्प ही माना गया है। जिसका जन्मदिन है, उसे सभी शुभचिन्तकों द्वारा उस अवसर पर पुष्प समर्पित किये जाने चाहिए।

उपर्युक्त आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए यदि युग निर्माण शाखाओं की संस्कार समिति अपना कार्य उत्साह एवं उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से करने लगे, तब उस क्षेत्र में इस पुण्य-प्रथा का प्रचलन बड़ी तेजी से हो सकता है। थोड़े ही दिनों में इस प्रयास का आशाजनक परिणाम भी देखा जा सकता है। संगठन की अभिवृद्धि और पुष्टि निश्चित है। जहाँ इतना आधार बना वहाँ अनेक रचनात्मक कार्यक्रम भी चल पड़ते हैं और उत्साह के वातावरण में नव-निर्माण की गतिविधियाँ आशाजनक परिमाण में बढ़ने लगती हैं। देखने में यह कार्य छोटा-सा है, पर अनुभव ने यह बताया है कि जहाँ के उत्साही कार्यकर्त्ताओं ने अपने यहाँ जन्मोत्सव मनाने की परिपाटी का प्रचलन किया वहाँ जन साधारण की नव-निर्माण की मजबूत आधार शिला जम गई और वहाँ बहुत कुछ उत्साह भरी प्रगति परिलक्षित होने लगी। इसी तष्य को ध्यान में रख कर युग निर्माण आन्दोलन से सहानुभूति, प्रेम एवं अभिरुचि रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को बहुत जोर देकर यह कहा जा रहा है कि वह जन्मोत्सव मनाने की परिपाटी को अपने क्षेत्र में प्रचलित करने का प्रयत्न करे और देखे कि कुछ ही दिनों में इसके उत्साहवर्धक परिणाम उपलब्ध होते हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book