| 
			 आचार्य श्रीराम शर्मा >> जागो शक्तिस्वरूपा नारी जागो शक्तिस्वरूपा नारीश्रीराम शर्मा आचार्य
  | 
        
		  
		  
		  
          
			 
			 5 पाठक हैं  | 
     ||||||
नारी जागरण हेतु अभियान
समर्पण
 नारी को भी पुरुष के आत्म-समर्पण की उतनी ही अभिलाषा रहती है, जितनी पुरुष को नारी के समर्पण की। जिस तरह पतिव्रत का इतना भर अर्थ कोई नहीं स्वीकार कर पाता कि पत्नी काम सदाचार तक सीमित रहे, फिर चाहे दिन भर लड़े, झगड़े, कटु बोले, क्रुद्ध हो। उसी तरह पुरुष के भी पत्नीव्रत का अर्थ पत्नी को पर्याप्त सम्मान देना, उसकी भावनाओं का आदर करना तथा ध्यान रखना होता है।
वैसे पुरुष में अपने को बड़ा मानने की हीन महत्त्वाकांक्षा रहती है। वह अपने कल्पित बड़प्पन के विपरीत जरा सी भी बात दिखने पर उत्तेजित हो जाता है। पुरुष को इस हीन अहमन्यता से मुक्त होना चाहिए। यदि परिवार में स्त्री व पुरुष की प्रतिष्ठा असमान हुई, तो इससे गृहस्थी की गाड़ी ठीक से नहीं चल पाती, लड़खड़ाती रहती है।
						
  | 
				|||||

 
		 






			 

