लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> जगाओ अपनी अखण्डशक्ति

जगाओ अपनी अखण्डशक्ति

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15495
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

जगाओ अपनी अखण्डशक्ति

मेरी वर्तमान आराध्य

भारतवर्ष की ''युवा पीढ़ी व बच्चे"


ईश्वर की विशेष अनुकम्पा इस शरीर को बाल्यकाल से ही प्राप्त हो गई थी। मेरे पितामह स्व. विश्वनाथ जी दीक्षित अत्यन्त धर्मनिष्ठ, सदाचारी, भावुक, स्वपाकी (अर्थात अपना भोजन स्वयं बनाकर ग्रहण करना) एवं सत्संगी पुरुष थे। जिनका संरक्षण एवं प्रेम मुझे उनके शरीर रहते तक अनवरत मिलता रहा। वे हमारे गोपनीय मित्र भी थे वे हमें धर्म, आध्यात्म, सगीत, सस्कृत, आचार-विचार, एवं पवित्रता सम्बन्धी अनेकानेक बाते बड़े ही सरल एवं व्यवहारिक रूप मे बताते रहते थे। उनके साथ हमने अपने बिठूर स्थित हनुमान मन्दिर मे बचपन का कुछ समय बिताया था। उस समय वे हमें नित्य प्रातः 3 से 4 के मध्य गंगा स्नान को ले जाते और बड़े ही प्यार से माँ गगा मे डुबकियाँ लगवाते। स्नान के बाद मुझे लेकर वे मन्दिर मे पूजन के लिए बैठते। अपने साथ हमसे भी कुछ ईश्वर आराधना कराते। सायंकाल हमको लेकर सत्संग में जाते तथा इस हेतु वे मुझे मानसिक रूप से विशेष प्रोत्साहित भी करते आदि आदि। इस प्रकार हमे अपने बाल्यकाल से ही भक्ति रस का कुछ-कुछ रसास्वादन करने को मिला।

इसके पश्चात् किशोरावरथा मे ईश्वर कृपा से एक ओर अपने परम श्रद्धेय तबला गुरु स्व. प. श्रीधर शर्मा जी का प्रेम भरा सानिध्य मिला और उधर दूसरी ओर प्रभु कृपा से 'रामकृष्ण मिशन आश्रम' से मेरा जुडाव हुआ। तबला और आश्रम मेरे जीवन की आधारशिला बने। गूंजें का प्रेम एव उत्साह से परिपूर्ण तबले का मार्गदर्शन तथा आश्रम के सन्तों के निस्वार्थ प्रेम ने मेरे जीवन को जैसे आलोकित एवं भावविभोर कर दिया। वही से मेरे जीवन मे धर्म, सगीत, अध्यात्म एवं ईश्वर की ओर कदम बढ़ाने का मार्ग प्रशरत्त हो गया। इसके अतिरिक्त ईश्वर की एक अन्य कृपा के रूप में बष 1996 से मुझे 'देव अन्तर्राष्ट्रीय योग केन्द्र' के संचालक डॉ. ओम प्रकाश आनन्द का प्रेम एवं आशीर्वाद योग गुरू के रूप मे प्राप्त हुआ जिनसे मुझे योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा सम्बन्धी अनेकानेक जीवनोपयोगी बाते सीखने को दिली।

वर्ष 1985 से प्रारम्भ हुए इस साधना संघर्ष में अचानक 1996 में एक भूचाल सा आया और उसने हमें साधना के बाद प्राप्त होने वाले कटु वरन सत्य परिणामों को एक के बाद एक हमारे समक्ष प्रकट करना प्रारम्भ कर दिया। हम क्या है, हमारा उद्देश्य क्या है, सत्य क्या है, तथा उसकी उपलब्धि के लिए क्या करे, बहुत कुछ सामने प्रकट सा हो गया और हमे प्रतीत होने लगा कि मानव जीवन का उद्देश्य ईश्वर प्राप्ति के अतिरिक्त अन्य कुछ भी नहीं। जिसके लिए प्रत्येक मनुष्य को प्राण पण से प्रयत्न करना चाहिए। इस हेतु हमे चाहिए कि खुद प्रयत्न करें और दूसरों को भी इस दिशा में प्रेरित करे। अतः हमने साधना में अन्य साधनों के अतिरिक्त सद्शास्त्रों का अध्ययन एवं उसका समाज में वितरण दोनों कार्य पर्याप्त मात्रा में प्रारम्भ कर दिये। परन्तु पुस्तको के वितरण से एक बात यह सामने आई कि धर्म पथ से बिलकुल अनजान व्यक्ति को अकस्मात कोई धार्मिक पुस्तक जैसे गीता, विवेकानन्द साहित्य या श्री रामकृष्ण परमहंस साहित्य दे देने पर वह साहित्य उसके लिए ठीक वैसे ही होता जैसे किसी हिन्दी भाषी व्यक्ति को अग्रेजी की पुस्तक दे देना। अतः ऐसा लगा कि इन्हें पहले इनकी रुचि के अनुसार धर्म की छोटी-छोटी बातें बतानी होगी और जब उनमे धर्म के प्रति रुचि जागृत होने लगे तब उन्हें अन्य साहित्य देना होगा। परन्तु क्या किया जाय अभी तक यह सुनिश्चित न हो सका था। तब तक मेरा केवल एक ही कार्य था कि व्यक्तिगत रूप से धर्म की चर्चा करना।

इधर वर्ष 1996 से वर्ष 2006 के इस दशक में कम्प्यूटर एवं मोबाइल के द्वारा आये भौतिकता के नये परिवर्तन ने पुनः कुछ सोचने पर विवश कर दिया है। यह सोच का विषय था इस दशक में आया परिवर्तन।

सबसे पहला परिवर्तन आया है हमारी प्रत्येक वस्तु एवं व्यक्ति केर व्यवसायीकरण के रूप में। कि कैसे किस व्यत्ति को किस वस्तु की अधाधुंध बिक्री के लिए इस्तेमाल किया जाये। इसके लिए इस दशक पूर्व तक वस्तुओं के विज्ञापनों में पुरुषों, महिलाओं एवं नवयुतियों के अश्लील प्रदर्शन द्वारा उत्पादों का प्रचार किया जाता था जिससे हम आज भी प्रभावित हैं जिसने हमारी युवा पीढ़ी एवं भारतीय संस्कृति को काफी क्षति पहुँचाई है। परन्तु इस दशक में हमने 'ज्यादा बिक्री ज्यादा लाभ' कमाने के लिए एक ऐसी परम्परा को जन्म दिया है जिसका दूरगामी परिणाम क्या होगा यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। पहला यह कि 'एक वस्तु की बिक्री पर एक फ्री' तथा इसको और अधिक प्रभावी एवं लाभप्रद बनाने के लिए अब प्रत्येक विज्ञापन में छोटे-छोटे बच्चों का इस्तेमाल होने लगा है तथा बच्चों के प्रयोग की वस्तुओं पर विशेष दिमाग एवं पैसा, 'एक के साथ एक फ्री' इस बात पर जोर-शोर से केन्द्रित किया जा रहा है।

दूसरा, 'बच्चों के प्रयोग की खाने पीने के बीजों में उनके पसन्द की हल्की वस्तुएँ फ्री रखकर उन्हें मोह जाल में फँसाया जा रहा है तथा महंगे-महंगे उत्पाद खरीदने को इस ढंग से आदती बनाकर माता-पिता को भी बाध्य किया जा रहा है। इसके साथ ही उनमे (बच्चो में) भी नये-नये तरीकों से पैसे एवं सस्ती सोहरत (लोकप्रियता) की भावना को इस कदर उकसाया जा रहा है कि छोटे-छोटे बच्चे अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़ उन नये नये टीवी चैनलों द्वारा अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के उद्देश्य से प्रसारित अनेकों बेसिर पैर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर लाखों कमाने, एक्टर, सिंगर, एकर आदि बनने के सपने देखने लगते हैं। जीतता है कोई एक परन्तु अपना कीमती समय एवं कोमल भावनाओं को नष्ट हुआ देखकर लाखों बच्चे इस छोटी उमर में डिप्रेशन, फ्रेस्ट्रेशन, इरिटेशन जैसी बीमारियों से घिर रहे हैं और गुमराह किये जा रहे हैं। अर्थात् हम अपनी 'पैसे की हवस का शिकार' अपनी सम्पूर्ण पीढ़ी को बना रहे हैं। इस पूरी प्रक्रिया में दोषी है-1. बड़े-बड़े पूँजीपति, 2. केबिल के जरिये दिन पर दिन बढ़ते टीवी चैनल, 3. हम, आप और हमारा समाज।

दूसरा परिवर्तन आया है कम्प्यूटर का हमारे दैनिक जीवन में धड़ल्ले से बढ़ता उपयोग। जिसने एक ओर तो रोजगार के संसाधनों को बुरी तरह प्रभावित किया है दूसरी ओर हमें शारीरिक, बौद्धिक एवं मानसिक रूप से रोगग्रस्त करना प्रारम्भ कर दिया है।

इतना अवश्य हुआ है कि कम्प्यूटरीकरण से हमने अपने को विश्व से पूरी तरह जोड़ लिया है। तथा दैनिक जीवन को और अधिक आरामदेह बना लिया है। कम्प्यूटर की इन्टरनेट प्रणाली के द्वारा हमें सम्पूर्ण विश्व की किसी भी विषय, देश या कुछ भी जो हम जानना चाहते हैं वह मिनटो में हमारे समक्ष आ जाता है। परन्तु इससे इन लाभों के अतिरिक्त कुछ ऐसा हानियाँ भी सामने आ रही है जिससे हमारे देश की संस्कृति, हमारे देश का भविष्य, हमारी युवा पीढ़ी एवं हमारे अबोध बच्चे सभी बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। इन्टरनेट के जारिये हमारे बच्चे एवं युवा 'चैटिंग' के जरिये बुरी संगत में पड़ रहे हैं। उन्हे (Friendship) दोस्ती के नाम पर चरित्र भ्रष्ट किया जा रहा है। कुछ अश्लील वेबसाइट के जरिये उन्हें समय से पूर्व अप्राकृतिक यौन सम्बन्धों की जानकारी एवं अवसर प्रदान किये जा रहे हैं। जिससे हमारे युवा व बच्चे दिशाहीनता का शिकार होकर शारीरिक एव मानसिक रोगो से ग्रस्त हो रहे हैं। नशा एवं उत्तेजक पदार्थों की तरफ उनका रुझान बढ़ता जा रहा है।

तीसरा परिवर्तन आया है दैनिक जीवन में बढ़ते मोबाइल के प्रयोग से। मोबाइल ने हमारी पशुवृति में आग में घी का काम किया है। कम्प्यूटर से हमारे युवा एवं बच्चे विश्व भर की गन्दगी सीखते हैं। और मोबाइल के द्वारा उनका आपस में प्रचार-प्रसार एवं प्रत्यक्ष उपयोग (Practical Application) सीखते हैं। मोबाइल ने अपराधवृत्ति को एक नया और अनोखा अदाज प्रदान किया है। जब जहाँ चाहो दुर्घटना का आयोजन मोबाइल के जरिये सेकेण्ड्स में कर डालो आदि-आदि। इसके अतिरिक्त सबसे ज्यादा प्रभावित मनुष्य का जीवन हुआ है। उसकी शन्ति नष्ट हो गई है। न चलते चैन, न बैठे चैन, न घर में चैन न बाहर, जहाँ आप तहाँ आपके मोबाइल की घंटी। देश को चलाने वाले हमारे नेता एवं कर्णधार मोबाइल, पढ़ने वाले बच्चों (Students) को free उपलब्ध करा रहे हैं। Free Sim by BSNL जिससे बच्चे ज्ञानार्जन छोड़कर अपना कीमती समय व्यर्थ के कार्यों में लगा कर अपना सर्वस्व बिगाड़ रहे हैं।

इस मोबाइल ने लड़के लड़कियों की दोस्ती को एक नया जोश एव उमंग प्रदान कर दोस्ती की इस मर्यादित परम्परा को एक अलग ही रंग या आयाम प्रदान किया है। मोबाइल अब आवश्यकता नही वरन् कितने का है इसमें क्या-क्या Function हैं और इस बात का प्रतीक हो गया है कि किसके पास कौन-सा Model है? आदि।

दरर-पन्द्रह वर्ष पूर्व तक लड़के लड़कियों के साथ छींटा-कसी करते देखे जाते थे परन्तु आज उल्टा नजारा जगह-जगह देखने में आता है। वाह री! पाश्चात्य सभ्यता और वाह री। भौतिकता एवं मस्ती की अंधी दौड़।

यह कुछ परिवर्तन हमने मोटे तौर पर आपके समक्ष रखे। इन परिवर्तनों से लाभ भी अवश्य हुए है। परन्तु एक लाभ जो हमारे बच्चे एवं युवाओं में विशेषरूप से देखने में आया है कि वे Over smart और over smart हुए हैं वो भी ऐसे कि जो भी देखे देखता ही रह जाये। युवाओं एवं बच्चों में आये दिन इन परिवर्तनों को देखकर याद आता है स्वामी-विवेकानन्द जी का 'देश को आह्वान' विषय। जिस पर उन्होंने यह कहा था कि : 'मैं देख रहा हूँ कि भारतवर्ष का उत्थान काल निकट है। परन्तु हे भारत। तुम्हें इस बात का विशेष ध्यान रखना होगा की तुम्हारा यह उत्थान धर्म केन्द्रित होना चाहिए। क्योंकि धर्म ही भारत की भित्ति है यदि इसको आधार नहीं बनाया तो वह विकास कितना भयावह होगा यह तो ईश्वर ही जानेगा।

भारत की स्त्री जाति के लिये कहा था कि हे भारत की नारियों। मैं यह अवश्य मानता हूँ कि तुम पर सैकड़ों-सैकड़ो वर्षों से अत्याचार होता आया है परन्तु बिना स्त्री जाति के उत्थान के भारत का पूर्ण उत्थान एवं विकास सम्भव नही। अतः वे भारत की नारियों तुम इस बात का हमेशा ध्यान रखना कि तुम्हारा आदर्श सीता, दमयन्ती और सावित्री होने चाहिए तभी तुम्हारा सका उत्थान एवं सम्मान सम्भव है अन्यथा यह विकास एक भयानक अवनति का ही कारक बनेगा।

उन्होंने नवयुवकों के आह्वान में कहा था कि हे भारत के सपूतों! भारत को ऐसे युवाशक्ति की आवश्यकता है जिनके स्नायु एवं मांसपेशियाँ फौलादी की हों। उनका आदर्श परशुराम और हनुमान होने चाहिए।

न कि माइकल जैक्सन या WWE के भद्दे पहलवान।

आज स्थिति यह है कि यदि आप ध्यान देकर तथा पास जाकर देखे तभी आप जान पायेंगे कि वह व्यक्ति युवा है या युवती क्योंकि दोनों ही तेजहीन, उच्छंखल, बलहीन, दिशाहीन एवं विचारहीन हो रहे हैं। स्त्रियाँ जींस टीशर्ट पहनकर व्वाय कट बाल रखे हैं और युवक जींस कमीज पहन उसपर स्त्रियोचित ढंग से बालों की चोटी बनाये हैं।

अतः हे मेरे युवा भाई बहनों एवं बच्चों अपने प्राचीन गौरव को पहचानो। तुम शेर हो गीदड़ नहीं। तुम में ऐसे महान ऋषियों, मुनियों का अंश विद्यमान है कि तुम यदि एक बार अपने आत्मस्वरूप को पहचान लो तो अपनी एक हुंकार से विश्व को आन्दोलित, अचंभित एवं चमत्कृत कर दोगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai