आचार्य श्रीराम शर्मा >> इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1 इक्कीसवीं सदी बनाम उज्जव भविष्य भाग-1श्रीराम शर्मा आचार्य
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विज्ञान वरदान या अभिशाप
अंतःस्फुरणा बनाम भविष्य बोध
जाने और सीखने की प्रक्रिया दूसरों के सान्निध्य में ही संपन्न होती है। यात्रा, पर्यटन भी इस उद्देश्य की कुछ हद तक पूर्ति करते हैं। इतने पर भी मनुष्य के अंतराल में निहित रहस्यमयी शक्तियों द्वारा अंतःस्फुरणा के रूप में मिलने वाली जानकारी को भी विस्मृत नहीं कर देना चाहिए। इनका कोई प्रत्यक्ष आधार न दीखते हुए भी इसमें उतनी ही सच्चाई है, जितनी दिन के आरंभ और अंत में, क्रमशः सूर्य के उदयाचल से निकलने और अस्ताचल में छिपने में है।
आरंभ काल में अग्नि का आविष्कार इसी अंतःस्फुरणा की देन थी। जिसे यह स्फुरणा हुई थी, उसने घर्षण का प्रयोग किया और अग्नि खोज ली। सूत कातना और उससे कपड़े बनाना इतना ज्ञान मानव को आरंभ में अंतःस्फुरणा द्वारा ही हुआ होगा। भाषा, लिपि, उच्चारण यहाँ तक कि अविज्ञात की खोजों, आविष्कारों का श्रीगणेश इसी आधार पर संभव हुआ है। एक बार सुयोग बन जाने के बाद तो उस खोज में सुधारपरिवर्तन कर सकना संभव हो जाता है, पर जहाँ कोई प्रत्यक्ष आधार ही न हो, वहाँ इस प्रकार की अनायास सूझ को, व्यक्ति अथवा शक्ति की रहस्यमयी उपलब्धि हो माना जा सकता है।
"इलहाम" "अपौरुषेय" शब्दों द्वारा धर्म ग्रंथों के श्रुति खंड को, ऐसी ही उपलब्धि के रूप में अभिव्यक्त किया गया है और कहा गया है कि यह मनःशक्ति संपन्न व्यक्ति के माध्यम से ईश्वरीय वाणी का प्राकट्य है। इस प्रक्रिया में चाहे वे पैगंबर हों, देवदूत हों अथवा अतींद्रिय क्षमता संपन्न मनीषी, उन्हें व्यक्ति न मानकर एक प्रचंड विचार प्रवाह का प्रतीक माना गया व उनके माध्यम से भविष्य में क्या कुछ संपन्न होने वाला है, इसकी अभिव्यक्ति की गई। हर धर्म, समुदाय में ऐसे इलहाम रहस्यमयी अंतःस्फुरणा के रूप में देखे समझे जा सकते हैं।
भविष्य-ज्ञान, प्रोफेसी, पूर्वाभास इसी श्रेणी में सम्मिलित माने जाते हैं। उसके कथित रूप में घटित होने पर मान लिया जाता है कि निराधार नहीं है। उसके पीछे कोई न कोई सुनिश्चित आधार अवश्य होना चाहिए। भविष्य कथन का यह आधार चाहे जिस भी विद्या पर अवलंबित हो, उसे आश्चर्यजनक अद्भुत या दैवी ही समझा जाता रहा है। पर अब वैज्ञानिक भी इस बात को स्वीकारने लगे हैं कि वर्तमान के अध्ययन द्वारा भविष्य के बारे में बहुत कुछ बताया जा रहा है। इस संबंध में भविष्य विज्ञान (फ्यूचरालाजी) की एक प्रथक शाखा का भी विकास हो चुका है। इसे भविष्यवाणी तंत्र का एक अंग माना जाए, तो कोई अत्युक्ति न होगी।
इसी संदर्भ में विश्व के मूर्धन्य लेखकों की कई पुस्तकें यथा-एच. जी. वेल्स की 'शेप आफ दि थिंग्स टु कम', ‘टाइम मशीन' तथा बी. एफ. स्किनर की 'बाल्डन टू' ‘ब्रेव न्यू वल्र्ड’ एवं ‘१९८४’ पिछले दिनों प्रकाशित हुई हैं। उन्हें देखते हुए ऐसा लगता है कि जैसे उन्होंने स्वयं भविष्य की झाँकी की हो और बाद में उसे ही पुस्तकाकार रूप दे दिया हो।
फ्यूचरालॉजी या भविष्य विज्ञान-अब एक पूर्णतः विज्ञान सम्मत विधा मानी जाने लगी है। पूर्व में कभी वायरलैस, गया था, पर क्रमश: समय गुजरने के साथ ही यह सब होता चला गया। जिन-जिन विद्वानों ने कंप्यूटर के आँकड़ों को आधार बनाकर भविष्य के संबंध में लिखा है, वे यही कहते हैं कि आज का चिंतन, निर्धारण भविष्य में सही निकले, तो कोई आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। इसका कारण बताते हुए मनीषी कहते हैं कि प्रवाह सदा एक सा नहीं रहता। उसमें समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। हवा कभी तूफान बनती है, तो कभी बवंडर-चक्रवात का रूप धारण कर लेती है। इन्हीं संभावनाओं को दृष्टिगत रखते हुए लेखकगण-गुंथर स्टेंट, फ़िटजीफ, काप्रा, एल्विन टाफलर ने अपनी कृतियों क्रमश: 'कमिंग आफ दि इक्कीसवीं सदी के आरंभ को व्यापक परिवर्तनों का काल और अपने वाले समय में सुख-समृद्धि होने की संभावना प्रकट कीहै।
इन सब संदर्भों, कथनों, तथ्यों का उद्देश्य मात्र इतना है कि लोगों में यह विश्वास पेदा किए जा सके कि आगे आने वाला समय भयावह-त्रासदी भरा नहीं है, सुखद है। इक्कीसवीं देखकर अंदाज लगाया जाता है। इस आशावाद का मूल आधार सामर्थ्य, जिसे कोई भी मनुष्य अपने अंदर जगा सकता है। आज जो भी कुछ भविष्य के संबंध में उज्ज्वल संभवनाएँ व्यक्त करते हुए कहा जा रहा है, उसकी जड़ें भी वहीं विद्यमान हैं। परोक्ष जगत में चल रही हलचलें व व्यापक स्तर पर किए जा रहे प्रयास-पुरुषार्थ जो प्रत्यक्ष भले ही दृष्टिगोचर न हों, उनकी परिणति निश्चित ही सुखद होगी।
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