लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री पंचमुखी और एकमुखी

गायत्री पंचमुखी और एकमुखी

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15488
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गायत्री की पंचमुखी और एकमुखी स्वरूप का निरूपण

गायत्री का भावनात्मक एवं वैज्ञानिक महत्त्व


गायत्री उपासना का भावनात्मक और वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टियों से बड़ा महत्त्व है, भावना की दृष्टि से विचार किया जाय, तो मानव जीवन के चरित्र उत्कर्ष का बीज-मन्त्र उसे कहा जा सकता है। सामान्यतया मनुष्य सबसे अधिक उपेक्षा 'सद्बुद्धि' की ही करता है। जिस औजार से उसे निर्माण कार्य करना है, उसे ही टूटा-फूटा भौंथरा और अनगढ़ रखता है। इस भूल के फलस्वरूप ही उसे जीवन लक्ष्य से वंचित रहना पड़ता है।

सृष्टि के समस्त प्राणियों की तुलना में सबसे श्रेष्ठ साधना सम्पन्न शरीर मनुष्य को मिला है। बोलने, सोचने, लिखने, मिल-जुल कर रहने और खोजने की जो विशेषताएँ मनुष्य को प्राप्त हैं, उन्हीं के बलबूते पर उसने उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँचने में सफलता पाई है। जितनी सुविधाएँ मनुष्य को प्राप्त हैं। उसका हजारवाँ भाग भी सृष्टि के अन्य प्राणियों को प्राप्त होता, तो वे अपने को धन्य मानते। आश्चर्य इसी बात का है कि इतनी सुविधाएँ रहते हुए भी लोग दु:खी क्यों हैं? निरन्तर चिन्तित, खिन्न, उदास क्षुब्ध और अशान्त क्यों रहते हैं? इसका एक ही कारण है कि उनकी विचारणा का-प्रज्ञा का-सद्बुद्धि का परिष्कार नहीं हुआ। यदि वे सोचने का तरीका सही बना लेते, तो आज जो अगणित समस्यायें और कठिनाइयाँ सामने उपस्थित हैं, उनमें से एक भी दृष्टिगोचर नहीं होती। सोचने का सही तरीका यदि सीख लिया जाए, तो फिर इसी जीवन में स्वर्ग की अनुभूतियाँ बिखरी हुई दिखाई पड़ने लगें। निस्सन्देह विचारणा की अशुद्ध प्रणाली ने ही स्वर्गीय सुविधाओं से मानव प्राणी को नारकीय परिस्थितियों में दु:ख दारिद्रय में पड़े रहने के लिए विवश किया है। यदि सुख-शान्ति की स्थिति सचमुच अभीष्ट हो, तो उसके लिए एक उपाय अनिवार्यत: करना पड़ेगा और वह उपाय है-अपनी विचार पद्धति का संशोधन।

गायत्री महामंत्र में इसी धर्म-रहस्य का उद्घाटन किया गया है। मानव जाति को सन्देश दिया है कि कोल्हू के बैल बने फिरने, मृगतृष्णा में भटकते रहने की अपेक्षा मूल तथ्य को समझो। सुख प्राप्ति के लिए प्रयल तो करो, पर प्रयत्न से पूर्व स्थिति को समझ भी लो कि वह कहाँ से और कैसे मिलेगा ?

गायत्री मंत्र बताता है कि विचार संशोधन, भावनात्मक परिष्कार वह आवश्यक तत्त्व है, जिसे प्राप्त किये बिना न किसी को आज तक सुख-शान्ति मिली है और न आगे मिलेगी। वस्तुएँ क्षणिक सुख दे सकती हैं। वासना और तृष्णा की मदिरा में कुछ ही क्षण उन्मत्त रहा जा सकता है। उनकी परिणति तो दूनी अशान्ति, दूनी हानि और दूनी असफलता में ही होती है। इसलिए हमें अपने मानसिक संस्थान को शुद्ध करने का सबसे अधिक प्रयत्न करना चाहिए। अपनी एक–एक प्रवृत्ति का सूक्ष्म निरीक्षण करना चाहिए और उन पर चढ़े हुए कुसंस्कारों का साहस पूर्वक परिष्कार करना चाहिए। वस्तुतः इसी का नाम साधना है। साधना का केन्द्र बिन्दु इसी प्रयास एवं परुषार्थ को कहा गया है।

गायत्री मंत्र में ईश्वर से यही माँगा गया है कि- प्रभु हमें, आपने मानव शरीर देकर असीम अनुकम्पा की है, अब मानव बुद्धि देकर हमें उपकृत और कर दीजिये, ताकि हम सच्चे अर्थों में मनुष्य कहला सकें और मानव जीवन के आनन्द का लाभ उठा सकें। गायत्री के चौबीस अक्षरों में परमात्मा के 'सवितु:' 'वरेण्यं' भर्गः' और 'देव' गुणों का चिन्तन करते हुए उन्हें अपने जीवन में धारण करने की आस्था बनाते हुए यह संकल्प किया गया है कि परमात्मा के अनुग्रह एवं वरदान की एकमात्र 'सद्बुद्धि' को भी हम प्राप्त करते रहेंगे। अपने जीवन को ढालते चले आये हैं। उसी संकल्प को बार-बार पूरी निष्ठा और भावनापूर्वक दुहराने का नाम गायत्री जप का सच्चा स्वरूप समझते हुए जो उस उपासना को करते हैं, वे उसका अनिर्वचनीय लाभ प्राप्त भी कर लेते हैं। वे इस अमृत को पाकर अमर बन जाते हैं और इस मृत्यु लोक में रहते हुए भी दिव्य-लोक में निवास करने का स्वर्गीय आनन्द पग-पग पर अनुभव करने लगते हैं।

वैज्ञानिकता की दृष्टि से गायत्री उपासना के अगणित भौतिक लाभ भी हैं। कष्टों और आपत्तियों में पड़े हुए, विपत्तियों में फैसे हुए, अभाव और दारिद्रय से पीड़ित असफलता की ठोकरों से विक्षुब्ध व्यक्ति यदि इस महामंत्र का आश्रय लेते हैं, तो उन्हें आशा की किरणें दृष्टिगोचर होती हैं। जिन्हें अपना भविष्य अन्धकारमय दीख रहा था और आपत्तियों के कुचक्र में पिस जाने का भय सता रहा था, उन्हें उस उपासना से नया प्रकाश मिलता है। अभावग्रस्त व्यक्ति दारिद्रय से और रुग्ण मनुष्य पीड़ाओं से छुटकारा प्राप्त करते देखे गये, कामनाओं की जलती हुई आग तृति और अशान्ति में परिणत होते देखी गई है। इस अवलम्बन का सहारा लेकर गिरे हुए लोग ऊपर उठते हैं। इस प्रकार के प्रतिफल किसी जादू से नहीं, वरन् एक वैज्ञानिक पद्धति से उपलब्ध होते हैं। गायत्री उपासना मनुष्य के विचारों और कार्यों में एक नया मोड़ एक नया परिवर्तन प्रस्तुत करती है। जिसका अन्तर्जगत बदले, तो उसके बाह्य जीवन में परिवर्तन प्रस्तुत होना ही चाहिए। होता भी है। इसे ही लोग गायत्री माता का अनुग्रह एवं वरदान भी मानते हैं।

अनेक व्यक्तियों को गायत्री उपासना के फलस्वरूप अनेक प्रकार के कष्टों से छुटकारा पाते और अनेक सुविधाएँ उपलब्ध करते हुए देखकर हमें यही अनुमान लगाना चाहिए। कि इस साधना पद्धति में ऐसे वैज्ञानिक तथ्यों का समावेश है, जिनके कारण साधक की अन्तःभूमि में आवश्यक हेर-फेर उपस्थित होते हैं और वह असफलताओं एवं शोक-सन्तापों पर विजय प्राप्त करते हुए तेजी से समुन्नत, समर्थ एवं सफल जीवन की ओर अग्रसर होता है।

गायत्री का महात्म्य भावनात्मक दृष्टि से भी है और वैज्ञानिक दृष्टि से भी। इसी से इस महान् अध्यात्म सम्बल को श्रद्धापूर्वक अपनाये रहने और उसे नित्य नियम में स्थान दिये रहने के लिए शास्त्रकार ने ये निर्देश किया है। ऋषियों ने प्रत्येक विवेकशील व्यक्ति के लिए गायत्री की निष्ठापूर्वक उपासना करने के लिए जोर दिया है और जो उस उपयोगी व्यवस्था का लाभ नहीं उठाना चाहते, उनकी भूल को उन्होंने कटु-भर्त्सना के साथ निन्दनीय भी ठहराया है। गायत्री उपासना भी मनुष्य को शक्ति और प्राण से भर देती है। इससे उसका जीवन व्यवस्थित ही होता है।

पंचमुखी साधना के द्वारा पंचकोशों के विकास की साधना एक विज्ञान है, जो भौतिक विज्ञान की अपेक्षा अधिक समर्थ और यथार्थ है, उससे मनुष्य शरीर और वंश सामान्य दिखाई देने पर भी राजाओं महाराजाओं जैसा जीवनयापन करता है। समस्त सिद्धियाँ उस विज्ञान में सन्निहित हैं। विश्व में जो कुछ भी है, उसका दर्शन गायत्री की पंचकोशी साधनाओं से प्राप्त किया जा सकता है।

इस पुस्तिका में इस तथ्य और विज्ञान का संक्षिप्त परिचय करा दिया गया। उससे यह नहीं मान लेना चाहिए कि वह हमारा विधान जिससे सूक्ष्म शक्तियों को प्राप्त किया जाता है, बता दिया गया। उन साधनों का क्रियापरक विवरण पंचकोशी साधना के नाम से अलग दे रहे हैं। उसके आधार पर कोई भी जिज्ञासु साधक अन्तर्विकास कर सकेंगे और उन सिद्धियों, सामर्थ्यों को प्राप्त कर सकेंगे, जिनसे इस शरीर में ही देवताओं जैसा आनन्द प्राप्त किया जा सके, पाँच कोशों के विकास का एक पंचवर्षीय साधनाक्रम पाठकों को दूसरे ट्रैक्ट में पढ़ने को मिलेगा।

 

* * *

...Prev |

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book