लोगों की राय

आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री पंचमुखी और एकमुखी

गायत्री पंचमुखी और एकमुखी

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15488
आईएसबीएन :00000

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

गायत्री की पंचमुखी और एकमुखी स्वरूप का निरूपण

प्रतीक का निष्कर्ष


यह गायत्री की दस भुजाएँ हुईं। अलंकार रूप से पाँच मुख और दस भुजाओं का चित्रण कलाकार, तत्त्व ज्ञानियों ने इसी दृष्टि से किया है कि इस महाविद्या में सनिहित तथ्यों, शक्तियों एवं सम्भावनाओं को लोग समझे, उन्हें प्राप्त करने एवं उनसे लाभान्वित होने के लिए प्रयत्न करें।

वस्तुतः गायत्री परमब्रह्म परमात्मा की विश्वव्यापिनी निराकार शक्ति है जो उच्चस्तर की साधना भूमिका में प्रकाश एवं आनन्द की अनुभूतियों में परिलक्षित होती है। साधारण उपासना क्रम में दो भुजी गायत्री का ध्यान ही उपयुक्त है; क्योंकि वही मानव प्राणी के लिए सरल एवं स्वाभाविक है। ज्ञान की प्रतिबिम्ब, सद्भावनाओं की प्रेरणा, मानवता की आत्मा, आदर्शवादिता की आस्था, उत्कृष्टता की निष्टा, सहृदयता एवं सज्जनता की सत्प्रवृत्ति के रूप में प्रकाश मण्डल के मध्य में विराजमान गायत्री का ध्यान ही उपयुक्त है। उसके एक हाथ में पुस्तक यह बताती है कि ज्ञान ही कल्याण का प्रधान अवलम्बन है। दूसरे हाथ में जल भरे कमण्डलु का होना यह संदेश देता है। कि यह देवी प्रेम, शार्त, त्याग एवं सद्गवना के प्रतीक कमण्डलु को धारण करती है। जहाँ गायत्री होगी, वहाँ उसकी वह अभिव्यञ्जना भी साथ रहेगी।

गायत्री का वाहन है हंस। हंस अर्थात् नीर-क्षीर का, उचित-अनुचित का वर्गीकरण करने वाला विवेक। हंस के बारे में यह किम्वदन्ती है कि वह पानी मिले दूध में से जल का अंश छोड़ देता है और केवल दूध पीता है। यह प्रवृत्ति गायत्री ज्ञान धारण करने वाले की होनी चाहिए। वह इस बुराई-भलाई मिले संसार में से केवल भलाई को ग्रहण करे और बुराई को छोड़ दे। जिसमें जैसी सूझ-बूझ तथा क्षमता है, वह गायत्री का वाहन हंस माना जायेगा, भले ही वह मनुष्य शरीर धारण किये क्यों न हो।

गायत्री का आसन खिले हुए कमल पुष्प का है। उपासक को खिले पुष्प की तरह प्रसन्न रहने का अभ्यस्त होना चाहिए। परोपकार के लिए जीवन धारण करना चाहिए और अन्त में अपने को देव पूजा एवं सन्तों की अभ्यर्थना में अपना अस्तित्व समर्पित करते हुए धन्य होना चाहिए। गायत्री कमल पुष्प पर बैठती हैं, जिस साधक का जीवन कमल पुष्प जैसी विशेषताओं से सम्पन्न होगा, गायत्री माता उसी के हृदय-कमल में विराजमान रहेंगी।

इन मान्यताओं के साथ हमें गायत्री उपासना के लिए एक मुख, दो हाथ वाली प्रतिमा का ध्यान करना चाहिए और पंचमुखी, दसभुजी प्रतिमा से उसका तत्वज्ञान एवं उपासना क्रम अपनाना चाहिए।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book