आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
कर्मनिर्मूलकारिणी
बंधन रूप कर्म वे होते हैं जो कामना, वासना, स्वार्थ एवं अहंकार की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। जो कर्म अनासक्त भाव से कर्त्तव्य समझकर किए जाते हैं, वे साधारण प्रकार के दीखते हुए भी पुण्य परमार्थ स्वरूप बन जाते हैं। ऐसे कर्म बंधनकारक नहीं होते। गीता में कर्मयोग विस्तारपूर्वक समझाया गया है। इस तत्त्वज्ञान को गायत्री माता अपने उपासक के अंत:करण में बहुत गहराई तक प्रवेश करा देती है। उनके जीवन में ही उतार देती है, जिससे उसके किए हुए कर्म के बंधनकारी परिणाम निर्मूल हो जाते हैं।
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