आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
अम्रतार्णवमध्यस्था
अमृत के समुद्र में रहने वाली गायत्री है। मस्तिष्क के मध्य में जो सहस्त्रार कमल है, उसके मध्य मधु कोष या अमृत घट माना है। खेचरी क्रिया करते समय जब जिह्वा को उलटकर तालु के मूल में लगाते हैं तो इसी मधुकोष से अमृत की बूंदें झरने और उसका रसास्वादन होने का अनुभव साधक को होता है। इस सहस्रार कमल पर ही विष्णु भगवान की शैय्या है। इसी को सहस्त्र फण वाला शेषनाग कहते हैं। इसका मध्य बिंदु जो अमृत कोष है उसी में गायत्री शक्ति का मूल निवास है। शिवजी ने गंगा को जिस प्रकार मस्तिष्क के मध्य भाग में शक्ति को सर्वप्रथम इस अमृतार्णव में अवस्थित चुंबक केंद्र में ही धारण करता है। फिर वह शरीर मस्तिष्क के विभिन्न भागों में तथा जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विस्तृत होता है।
व्यापक बाह्य जगत में प्रकृति का मध्यबिंदु अमृतार्णव में माना गया है। सब प्रकार के आनंदों की किरणें इसी केंद्र से उद्भूत होकर प्राणियों को नाना प्रकार के आनंदों एवं उल्लासों का रसास्वादन कराती हैं। इस अमृतार्णव केंद्र का जो रसोद्भव है, उसमें गायत्री का निवास बताया गया है। इस प्रकार यह सब प्रकार के आनंदों की मूल मानी गयी हैं।
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