आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
ऋषिदेवनमस्कृता
ऋषियों और देवताओं द्वारा अभिनंदित गायत्री ही है। मनुष्य को ऋषि बना देने की क्षमता गायत्री में है। उसके पाशविक कुसंस्कार समाप्त होकर धर्म कर्तव्यों के अनुरूप विचार आवरणों की प्रधानता हो जाती है तो वह ऋषि कहलाने लगता है। ऋषि का गौरव प्राप्त कर लेना मनुष्य के लिए चक्रवर्ती शासक या कुबेर के कोष का अधिपति बन जाने से भी बढ़कर अधिक महत्त्वपूर्ण है। जब यह गौरवास्पद स्थिति प्राप्त होती है, तो वह ऋषि इस स्थान के मूल कारण गायत्री के लिए अत्यंत कृतज्ञतापूर्वक नतमस्तक होता है। ऋषि से अगली पदवी देवता की है। दिव्य गुणों, दिव्य स्वभावों, दिव्य आचरणों के कारणों को बढ़ाते-बढ़ाते वह ऋषि ही आगे चलकर अमर होकर देवता बन जाता है, तब भी उसे यही अनुभूति होती है। इस उच्च स्थिति पर पहुँचाने के लिए गायत्री रूपी सीढ़ी ही सर्व प्रधान उसकी सहायिका रही है। उसके प्रति उसका मन निरंतर शतशः प्रणाम करता रहता है। इन्हीं कारणों से गायत्री को 'ऋषि देव नमस्कृता' कहा जाता है।
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