आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री की असंख्य शक्तियाँ गायत्री की असंख्य शक्तियाँश्रीराम शर्मा आचार्य
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गायत्री की शक्तियों का विस्तृत विवेचन
ऊर्ध्वाधोगतिभेदिनी
आत्मविकास की दिशा में बढ़ता हुआ साधक प्रारंभ में सतोगुण और स्वर्गीय आनंदों की ओर बढ़ता है, पर जब उच्च भूमिका में पहुँचता है तो त्रिगुणातीत हो जाता है। उसकी स्थिति परमहंस गति में, स्थितप्रज्ञता में निर्विकल्प समाधि में हो जाती है। अधोगति से तो वह पहले ही छूट चुका था, उस उच्च स्थिति पर पहुँचकर वह स्वर्गीय सुखों से भी परे हो जाता है और ब्रह्मानंद से परमानंद में लीन होकर अविचल शांति का अधिकारी बनता है। इसी पूर्णावस्था तक पहुँचा देने वाली होने के कारण, समस्त शुभ-अशुभ भवबंधनों से मुक्त कर देने के कारण गायत्री ऊध्र्वाधोगति भेदिनी अर्थात् ऊँची-नीची गतियों को समाप्त कर देने वाली कही जाती है।
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