आचार्य श्रीराम शर्मा >> बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह) बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह)श्रीराम शर्मा आचार्य
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सद् वाक्यों का अनुपम संग्रह
व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण संबंधी सद् वाक्य
य - व
- यदि मनुष्य अपनी आत्मा के सामने सच्चा है, तो उसे सारी दुनिया की परवाह नहीं करनी चाहिए।
- यदि मनुष्य कुछ सीखना चाहे, तो उसकी प्रत्येक भूल कुछ न कुछ सिखा देती है।
- यदि हमें जीवन से प्रेम है, तो यही उचित है कि समय को व्यर्थ नष्ट न करें।
- युग परिवर्तन का अर्थ है-मानवीय दृष्टिकोण की परिष्कार।
- राग और द्वेष स्वार्थ और संघर्ष का जन्मदाता है।
- लघु से महान्, अणु से विभु, आत्मा से परमात्मा, नर से नारायण, पुरुष से पुरुषोत्तम बनने की विचारधारा का नाम आस्तिकता है।
- लोग क्या कहते हैं, इस पर ध्यान मत दो। सिर्फ यह देखो कि जो करने योग्य था, वह बन पड़ा या नहीं।
- लोग प्रशंसा करते हैं या निन्दा इसकी चिन्ता छोड़ो। सिर्फ एक बात सोचो कि ईमानदारी से जिम्मेदारियाँ पूरी की गई या नहीं।
- वह स्थान मंदिर है, जहाँ पुस्तकों के रूप में मूक किन्तु ज्ञान के देवता निवास करते हैं।
- वही उन्नति कर सकता है, जो स्वयं को उपदेश देता है।
- वही जीवित है, जिसका मस्तिष्क ठंडा, रक्त गरम, हृदय कोमल और पुरुषार्थ प्रखर है।
- विचार बल संसार का सर्वश्रेष्ठ बल है।
- विश्वास खो बैठना मनुष्य को अशोभनीय पतन है।
- विषयों, व्यसनों और विलासों में सुख खोजना और पाने की आशा करना भयानक दुराशा है।
- वे माता-पिता धन्य हैं, जो अपनी संतान के लिए उत्तम पुस्तकों का एक संग्रह छोड़ जाते हैं।
- व्यसन और व्यभिचार दीर्घजीवन के शत्रु हैं।
- व्यसनों से कोसों दूर रहें, क्योंकि ये वास्तविक प्राणघातक शत्रु हैं।
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