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आचार्य श्रीराम शर्मा >> बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह)

बोलती दीवारें (सद्वाक्य-संग्रह)

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15477
आईएसबीएन :00000

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सद् वाक्यों का अनुपम संग्रह

व्यक्ति, परिवार एवं समाज निर्माण संबंधी सद् वाक्य

प - म

  • परमात्मा की सच्ची पूजा हे सद्व्यवहार।
  • परमार्थ -  मानव जीवन का सच्चा स्वार्थ है।
  • परमेश्वर का प्यार केवल सदाचारी और कर्त्तव्य परायणों के लिए सुरक्षित है।
  • परोपकार से बढ़कर और निरापद दूसरा कोई धर्म नहीं।
  • प्यार और सहकार से भरा-पूरा परिवार ही धरती का स्वर्ग होता है।
  • प्रतिभाओं की ढलाई का समर्थ संयंत्र है-ब्रह्मवर्चस, गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज।
  • प्रतिभाशाली का पाप समाज का बहुत बड़ा अहित करता है।
  • प्रत्येक काम का अपना अवसर होता है और अवसर वही है, जब वह काम आपके सामने पड़ा हो।
  • प्रमादपूर्ण जीवन संसार की सारी बुराइयों और व्यसनों का जन्मदाता है।
  • प्रेम समस्त सत्प्रेरणाओं का स्रोत है।
  • प्रेम ही आत्मा का प्रकाश है, जो इस प्रकाश में जीवन पथ पर अग्रसर होता है, उसे संसार में शूल नहीं, फूल नजर आता है।
  • फल की आतुरता प्रगति के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है।
  • फूलों की सुगंध हवा के प्रतिकूल नहीं फैलती, पर सद्गुणों की कीर्ति दसों दिशाओं में फैलती है।
  • बच्चा माता-पिता के व्यक्तित्व और स्वभाव का संगम है।
  • बिना श्रम के अपनी आवश्यकता पूर्ण करना चोरी है।
  • बीता हुआ समय और कहे हुए शब्द कभी वापस नहीं बुलाए जा सकते।
  • बुद्धिमान् वह है, जो किसी को गलतियों से हानि होते देखकर अपनी गलतियाँ सुधार लेता है।
  • बुरी पुस्तकें शत्रु से कम नहीं हैं।
  • भय हमारी स्थिरता और प्रगति में सबसे बड़ा बाधक है।
  • भाग्य को मनुष्य स्वयं बनाता है, ईश्वर नहीं।
  • भाग्य पर नहीं, चरित्र पर निर्भर रहो।
  • भाग्यवाद हमें नपुंसक और निर्जीव बनाता है।
  • भूल सुधार मनुष्य का सबसे बड़ा विवेक है।
  • मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता आप है।
  • मनुष्य एक भटका हुआ देवता है। सही दिशा पर चल सके, तो उससे बढ़कर श्रेष्ठ और कोई नहीं।
  • मनुष्य और कुछ नहीं मात्र भटका हुआ देवता है।
  • मनुष्य कर्म करने में स्वतंत्र है, परन्तु इनके परिणामों में चुनाव की कोई सुविधा नहीं।
  • मनुष्य स्वयं ही अपना शत्रु और स्वयं ही अपना मित्र है। इसलिए अपने को उठाओ, गिराओ मत।
  • मनुष्यता सबसे अधिक मूल्यवान् है। उसकी रक्षा करना प्रत्येक जागरूक व्यक्ति का परम कर्तव्य है।
  • महत्त्वाकांक्षाओं का सही आधार है-पवित्रता एवं प्रखरता की उच्च स्तरीय अभिवृद्धि।
  • महानता के विकास में सबसे बड़ी बाधा असंयम है।
  • महान् चरित्र और आदर्शवान् व्यक्तित्वों का समय कभी खाली नहीं रहता।उनकी महानता का चिह्न ही व्यस्तता है।
  • मांसाहार मानवता को त्याग कर ही किया जा सकता है।
  • मातृत्व नारी के जीवन का सर्वोत्कृष्ट गौरव है।
  • मानव जीवन की सफलता का एकमात्र मार्ग सन्मार्ग ही है और ज्ञान द्वारा सन्मार्ग का निर्धारण होता है।

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