आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन बिना मोल आफत दुर्व्यसनश्रीराम शर्मा आचार्य
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दुर्व्यसनों की समस्या
तम्बाकू
तम्बाकू (बीड़ी, सिगरेट, हुक्का आदि) कामोद्दीपक पदार्थ है। इसकी उत्तेजना में मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियाँ उत्तेजित हो उठती हैं और मनुष्य व्यभिचार, अशिष्टता, अनीति की ओर प्रवृत्त होता है। तम्बाकू पीने से चरित्रहीनता आती है। चरित्र भ्रष्टता के साथ नपुंसकता आती है।
तम्बाकू का विषैला प्रभाव मनुष्य के रक्त को भी दूषित कर देता है। उसका सारा ओजस्वी तत्त्व नष्ट हो जाता है। जिससे धूम्रपान करने वाले के मुख पर कभी भी तेज उत्पन्न नहीं हो पाता। उसका वीर्य पानी की तरह पतला होकर शीघ्र पतन, स्वप्न दोष तथा प्रमेह आदि की भयंकर बीमारियाँ पैदा करके मनुष्य को निर्जीवता के हवाले कर सकता है।
तम्बाकू में १-निकोटीन, २-कोलतार, ३-आर्सेनिक और ४-कार्बन मोनोक्साइड अथवा कोयले की गैस ये चार प्रकार के पदार्थ होते हैं, जो मानव स्वास्थ्य के लिए विष का काम करते हैं।
निकोटीन से हमारी घ्राण शक्ति कमजोर हो जाती है। सिगरेट का धुंवा बराबर नाक से बाहर निकलने के कारण नाक के पतले पर्यों पर बुरा प्रभाव पड़ता है। नाक के स्वाभाविक कार्य सुगन्ध-दुर्गन्ध को महसूस करने की शक्ति मंद पड़ जाती है, आँखों की ज्योति पर भी निकोटीन के विष का बुरा प्रभाव पड़ता है। इस दुर्व्यसन को छोड़ने में ही भलाई है।
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