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आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन

बिना मोल आफत दुर्व्यसन

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2020
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15476
आईएसबीएन :00000

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दुर्व्यसनों की समस्या

मद्यपान


दुर्व्यसन कुछ थोड़े से व्यक्तियों के जीवन को ही नष्ट नहीं करते, वरन् बड़े-बड़े देश, राष्ट्र, जन समुदाय इनके कारण सर्वनाश के गड्ढे में गिर जाते हैं। मुगल साम्राज्य का मूलोच्छेद शराबखोरी के कारण ही हुआ। इसी प्रकार चीन का राष्ट्र अफीमखोरी के कारण पतनोन्मुख हुआ। पुराने जमाने में भी मिश्र, यूनान और रोम के उन्नतिशील और शक्तिशाली राष्ट्र मद्य के फन्दे में फँसकर पतन के गर्त में गिर चुके हैं। हमारे प्राचीन इतिहास में यादवों का शक्तिशाली राज्य मद्यपान के व्यसन के कारण ही नष्ट हो गया और श्रीकृष्ण जैसे लोकोत्तर पुरुष भी उसकी रक्षा न कर सके। यही कारण है कि हिन्दू धर्मशास्त्रों में सुरापान की गिनती महापातकों में की गई है।

मद्यपान से सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन पर प्रभाव पड़ता है। दुष्प्रवृत्तियों को बढ़ावा मिलता है। साथ ही शराबी को व्यक्तिगत क्षति भी कम नहीं उठानी पड़ती है। शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक क्षति के साथ ही अपने प्रति जन विश्वास का समाप्त हो जाना एक इतनी बड़ी क्षति है, जिसकी पूर्ति नहीं हो सकती। प्रतिभावान एवं शक्ति संपन्न होते हुए भी उसका चरित्र संदिग्ध बना रहता है। हूँढा जाय तो प्रतिभा की, संपन्नता की दृष्टि से अनेकों शराबी मिल जायेंगे, जिनकी विशिष्टता को देखकर सभी आश्चर्यचकित रह जायेंगे, किन्तु उनकी उस दुष्प्रवृत्ति के कारण लोगों के मन में सदा उनके प्रति अविश्वास और तिरस्कार ही बना रहता है।

कुछ व्यक्तियों की यह गलत धारणा हो गई है कि शराब से शक्ति प्राप्त होती है। शराब उत्तेजक मात्र है। पीने के कुछ काल तक इससे हमारी पूर्व संचित शक्ति एकत्रित होकर उद्दीप्त मात्र होती है। नई शक्ति नहीं आती। यह शक्ति उत्पन्न करने के स्थान पर, नशे के बाद मनुष्य को निर्बल, निस्तेज और निकम्मा बना जाती है। आदत पड़ने पर इसकी उत्तेजना के बिना कार्य में तबियत नहीं लगती। गरीब भारत का इतना रुपया इसमें व्यय हो जाता है कि पौष्टिक भोजन, दूध, फल, इत्यादि के लिए कुछ शेष नहीं बचता। जो व्यक्ति उत्तेजक पदार्थों से शक्ति प्राप्ति की आशा रखता है, वह कृत्रिम माया की मरीचिका में निवास करता है।

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