आचार्य श्रीराम शर्मा >> बिना मोल आफत दुर्व्यसन बिना मोल आफत दुर्व्यसनश्रीराम शर्मा आचार्य
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दुर्व्यसनों की समस्या
अपव्यय
यदि अनावश्यक खर्च करने की आदत है, तो अधिकतर धन बेकार बातों में ही उड़ जायेगा। फिर उचित आवश्यकताओं से वंचित ही रहना पड़ेगा। हमें समझना चाहिए कि कमाते भले ही हम हों, उस आजीविका में परिवार के हर सदस्य की साझेदारी है। खर्च करते समय परिवार की वर्तमान और भावी आवश्यकताओं का ध्यान रखते हुए यह मानना पड़ेगा कि व्यय करने के मामले में हम स्वतंत्र नहीं हैं। साझे की पूँजी का विनियोग साझीदारों की इच्छा, आवश्यकता को ध्यान में रख कर ही करना पड़ता है। एक सद्गृहस्थ को इसी तरह सोचना चाहिए। और अनावश्यक अपव्यय में एक कौड़ी खर्च करने से पूर्व हजार बार सोचना चाहिए।
विवाह उत्सव अपने लिए एक कमर तोड़ भार बना हुआ है। लड़के वाले दहेज की लम्बी-चौड़ी रकमें और कीमती समान.माँगते हैं। लड़की वालों की माँग कन्या के लिए बहुमूल्य जेवरों, कीमती कपड़ों की रहती है। तमाशबीन, सजधज की बरात-बाजे, आतिशबाजी, बढ़िया दावत और अमीरी शान-शौकत की आवभगत चाहते हैं। पग-पग परनिरर्थकनेग-जोग इतने खड़े रहते हैं कि उनमें ढेरों खर्च होता है। हमें विचार करना होगा कि शादियों का वर्तमान खर्चीला स्वरूप जारी रहने दिया जाये अथवा नहीं? हम चेते और सादगी केवातावरण में मितव्ययिता वाले सज्जनता और विवेकशीलता के आधार पर विवाह आयोजनों की योजना बनाएँ।
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