नई पुस्तकें >> रौशनी महकती है रौशनी महकती हैसत्य प्रकाश शर्मा
|
0 5 पाठक हैं |
‘‘आज से जान आपको लिख दी, ये मेरा दिल है पेशगी रखिये’’ शायर के दिल से निकली गजलों का नायाब संग्रह
4
दूर कितने क़रीब कितने हैं
दूर कितने क़रीब कितने हैं
क्या बताएँ रक़ीब कितने हैं
ये है फ़ेहरिस्त जाँनिसारों की
तुम बताओ सलीब कितने हैं
कोई दिलकश सदा नहीं आती
क़ैद में अन्दलीब कितने हैं
मयक़शी पर बयान देना है
होश वाले अदीब कितने हैं
जिसको चाहें उसी से दूर रहें
ये सितम भी अजीब कितने हैं
अपनी ख़ातिर नहीं कोई लम्हा
हम भी आख़िर ग़रीब कितने हैं
तीरगी से तो दूर हैं लेकिन
रौशनी के क़रीब कितने हैं
0 0 0
|