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प्रतिभार्चन - आरक्षण बावनी

सारंग त्रिपाठी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 1985
पृष्ठ :40
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15464
आईएसबीएन :0

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5 पाठक हैं

५२ छन्दों में आरक्षण की व्यर्थता और अनावश्यकता….

पत्रकार सम्राट पं. बनारसी दास चतुर्वेदी
का

शुभाशीष

कविवर श्री सारंग त्रिपाठी कानपुर की पुस्तिका प्रतिभार्चन के अनेक पद्य (मुक्तक) मैंने पढ़वाकर सुन लिये हैं। जो कुछ भी उन्होंने लिखा है, वह बड़े प्रभाव शाली ढंग से, भाषा साफ सुथरी व छपाई अति सुन्दर है। पुस्तिका का मूल्य रु0 1.50 पैसे मंहगाई के ख्याल से उचित ही है।

प्रतिभार्चन में कविवर त्रिपाठी ने प्रतिभा के साथ हो रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज लगाई है। उनका यह कथन सर्वथा ठीक ही है कि आरक्षण का आधार जातिगत न होकर आर्थिक स्थिति पर निर्भर होना चाहिये। जिन लोगों को सैकड़ों वर्षों से दबोच रखा गया था उनको सुविधायें तो मिलनी चाहिये फिर भी कोई काम ऐसा नहीं करना चाहिये जिससे जातिगत विद्वेष बढ़े और किसी प्रतिभा का दमन हो। लोकतन्त्र में समानता का व्यवहार होना चाहिये। कवि ने ठीक ही कहा है कि :

"चाहे हो किसी जाति या कि धर्म का कोई
सबका समान हक है, अघोषित न रहेगा।

इसमें न जाति-पांति की दीवार उठाओ,
उनकी मदद करो कि जो सचमुच गरीब हों।

आशा है कि यह पुस्तिका समानता के व्यवहार के लिये प्रेरणा स्रोत बनेगी। यही मेरी शुभ-कामना है।

10-8-83

बनारसीदास चतुर्वेदी
फिरोजाबाद
आगरा

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