नई पुस्तकें >> सुबह रक्त पलास की सुबह रक्त पलास कीउमाकांत मालवीय
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सुबह रक्तपलाश की - उमाकान्त मालवीय का तीसरा कविता संग्रह है…
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दूर दूर तक मरुथल
दूर दूर तक मरुथल,
छलता मृगजल
काँटे उग आये हैं कण्ठ में
प्यासे हम कहाँ जायँ?
आँखों को स्वप्न नहीं
नींद नहीं
रोशनी नहीं
सूरत या मूरत
अब तक कोई क्यों बनी नहीं
दिये उगलते काजल
काजल केवल
दीवारों में धुए जमे जमे
घुटता दम कहाँ जाँय ?
जिन पांवों में
काँटे रोज़ चुभ चुभ कर टूट गये
तनिक आँच बस
मोमिया कवच पिघले छूट गये।
उफ ! बैसाखी सम्बल
क्या होगा कल ?
आह बतलाये कौन यह हमें
बढ़ता तम, कहाँ जाँय ?
अपने संघर्षों से
कटे छटे हम
कौन कहे क्लीव भूमिकाओं का
प्रतिदिन का क्रम
मौन दहे
पहचाने पथ ओझल
सूखी कोपल
हाँफते रचनाक्रम थमे थमे
पलकें नम, कहाँ जाँय ?
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