लोगों की राय

नई पुस्तकें >> गीले पंख

गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

5 पाठक हैं

श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


32

संझा बेला


संझा बेला !
पंछी लौटे
पांत बनाए,
अपने-अपने
पर फैलाए,
ध्यान लगाए --
कहीं दूर नीड़ों में
उन के नेह-जतन के
चिह्न सरीखे
धरे हुए
कुछ कोमल तिनके।
और जहाँ,
खग-शावक अपनी
नन्ही-नन्ही चोंचें खोले
बाट जोहते होंगे,
मन में भाव लिए अनतोले-बोले !
 
इधर त्वरा है,
उधर प्रतीक्षा।
दोनों ओर
लगा है मन में
सुधियों की छवियों का मेला !
संझा बेला!

संझा बेला--
मैं एकाकी !
सोच रहा हूँ
कितना बाक़ी रहा चुकाना
कर्ज धरा का?
इतना ले-दे कर भी
कितना रह जाता है खोना-पाना ?
जहाँ न हो आया हूँ ,
ऐसा कौन ठिकाना ?
कौन ठौर ऐसा है
मुझ को जहाँ न जाना ?
मन भ्रमित,
थकित पग,
धूमिल हो आया मेरा मग।

नीड़ न कोई,
भीड़ न कोई,
रहा अकेला --
संझा बेला !

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book