नई पुस्तकें >> गीले पंख गीले पंखरामानन्द दोषी
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श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…
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कौन जाने !
कौन जाने कल, खबर पल की नहीं,
क्या मिलेगा आज फिर इनकार में।
जब कि आ कर ही रहेगी कल प्रलय,
हो न सकती जब नियति कुछ भी सदय
किस लिए चिन्ता करूँ मैं व्यर्थ फिर -
वार दूँ क्यों उस प्रलय पर यह प्रणय ?
देख लूँगा आएगा जो कल उसे -
आज लेकिन बाँध लो अँकवार में।
आज का विश्वास ही विश्वास है,
आज का इतिहास ही इतिहास, है;
कल अगर अमृत मिले, वह व्यर्थ है -
आज अधरों पर बला की प्यास है
क्या करूँगा मैं किनारा खोज कर -
लक्ष्य मिल जाए अगर मँझधार में।
वीण भी मुझ को मधुर, झंकार भी,
गीत भी मुझ को मधुर, स्वरकार भी
हार हो या जीत, क्या इस से मुझे -
जीत से भी प्यार, प्यारी हार भी;
हार की मुझ को छुएगी क्यों जलन -
जब कि तुम चन्दन बनो अंगार में।
हर कली की चाह बनना फूल है,
फूल का अन्तिम चरण, पर, धूल है;
इस लिए दिल का लगाना फूल से -
कह रही दुनिया- सरासर भूल है ;
भूल का लेकिन करो उपहास मत
भूल ही है ज़िन्दगी संसार में।
कौन जाने पुण्य क्या है, पाप क्या,
क्या पता वरदान क्या, अभिशाप क्या !
नेह देखा जिस जगह, सिर झुक गया -
और क्या होगी इबादत, जाप क्या ?
नेह की अवहेलना ही पाप है
पुण्य बँध जाना किसी के प्यार में।
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