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गीले पंख

रामानन्द दोषी

प्रकाशक : आत्माराम एण्ड सन्स प्रकाशित वर्ष : 1959
पृष्ठ :90
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15462
आईएसबीएन :0

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5 पाठक हैं

श्री रामानन्द 'दोषी' के काव्य-संग्रह ‘गीले पंख' में 33 कविताएं हैं…


18

फूल और धूल


दो फूल खिले, दो धूल मिले !
है अन्त यही सब का निश्चित
दो दिन पीछे, दो दिन पहले।

यह किस का आज सुहाग लुटा,
यह किस की मांग सिंदूर भरा ?
यह किस को लहरें लील गईं -
यह कौन जलधि से उठ उभरा ?

किन आँखों में मुसकान मुखर,
यह कौन प्रभाती गाता है ?
झुक आई यह किस की सन्ध्या,
किस के नयनों से अश्रु ढले ?

जीवन-प्याले में क्रूर मृत्यु,
साँसों की हाला पीती है;
हम समझे यौवन को अक्षय -
पर अन्त सुराही रीती है ,

लेकिन जब तक दो घूँट बचे,
मैं क्यों न नियति पर कुछ हँस लूँ
शायद मेरी मुसकान कभी
बन कर कोई पथ-दीप जले !

कितनी मधुऋतु, कितने पतझड़,
कितने उत्थान, पतन प्रति क्षण ;
इस विश्व महोदधि में कितना -
अनजाना नन्हा मैं जल-कण !

लेकिन लघु तन अरमान बहुत,
सीमित लहरें तूफ़ान बहुत -
है चाह यही कोई प्यासा
पी मुझ को दो डग और चले !

यों तो मैं अपने हाथों से
सी लूँगा अपना आप कफ़न
मन की हर उठती पीड़ा को -
कर लूंगा मैं चुपचाप दफ़न;

पर आशा बन तुम साथ रहो,
विश्वास न बन जाओ मेरे ;
कोरे विश्वासों में कोई
अपने को कब तक आप छले !

लो, मंज़िल का कुछ छोर नहीं,
पर पथ का अन्त हुआ मेरे ;
दो क्षण विश्राम न ले पाया -
उखड़े जाते अपने डेरे ;

कोई पूछे तो कह देना
यह असमय ही मुरझाया था
इस करुण कहानी से शायद
पथ का कोई पाषाण गले !

दो दिन पीछे, दो दिन पहले !

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